पवन ऊर्जा What is Wind Energy

पवन ऊर्जा (Wind Energy)

पृथ्वी के चारों ओर वायु का एक घेरा है जिसे वायुमण्डल कहते हैं। हम वायु को देख नहीं सकते, केवल उसकी गति से वायु का अनुभव कर सकते हैं। जब वायु गति करती है तो इसे पवन (wind) कहते हैं। गतिमान वायु (पवन) वस्तुओं को धकेलती है। कभी-कभी वायु इतने तीव्र वेग से गति करती है कि यह बहुत शक्तिशाली रूप धारण कर लेती है।

यह इतनी शक्तिशाली होती है कि कभी-कभी विशालकाय पेड़ों को जड़ से उखाड़ देती है, मकानों को गिरा देती है। अतः पवन में कार्य करने के लिए पर्याप्त ऊर्जा होती है। यही पवन ऊर्जा कहलाती है।

पवन की ऊर्जा इसकी गति के कारण होती है अर्थात् पवन ऊर्जा में गतिज ऊर्जा है। पवन की यह गतिज ऊर्जा यान्त्रिक कार्य करने के लिए प्रयुक्त की जा सकती है।

उदाहरण --- जल में पतवार द्वारा नाव को चलाने में, पवन चक्की चलाने में, विद्युत उत्पादन आदि में।

भारत में गुजरात, राजस्थान के कुछ भाग, पश्चिमी मध्य प्रदेश, समुद्र तटीय क्षेत्र, दक्षिणी तमिलनाडु बंगाल की खाड़ी. कर्नाटक के कुछ भाग तथा अरब सागर के द्वीप उच्च पवन ऊर्जा उपलब्ध करने के लिए उपयुक्त पाये गये हैं।

पवन की उत्पत्ति के कारण

वायु के गतिमान होने अर्थात पवन के बहने के लिए सौर ऊर्जा ही पूरी तरह उत्तरदायी है। पृथ्वी के चारों ओर वायु विद्यमान है। सूर्य की किरणों के पृथ्वी पर गिरने से इसकी सतह तथा इसके निकट की वायु गर्म हो जाती है परन्तु पृथ्वी की भूमध्य रेखा के पास सूर्य की किरणों की तीव्रता पृथ्वी के ध्रुवों पर मिलने वाली तीव्रता की अपेक्षा बहुत अधिक होती है। इसलिए पृथ्वी के भूमध्यवर्ती क्षेत्रों में पृथ्वी की सतह के पास की वायु बहुत ज्यादा गर्म हो जाती है, जिससे इसका घनत्व घट जाता है, अर्थात् यह हल्की हो जाती है। 

अतः यह गर्म वायु हल्की होने के कारण ऊपर की ओर उठती है। गर्म वायु ऊपर उठने से बने रिक्त स्थान को भरने के लिए ध्रुवीय क्षेत्रों की अपेक्षाकृत ठंडी वायु भूमध्यवर्ती क्षेत्रों की ओर बहने लगती है। इस प्रकार पवन की उत्पत्ति होती है।

अतः सामान्यतः कहा जा सकता है कि पवन की उत्पत्ति पृथ्वी तल के समीप के वायुमण्डल के असमान रूप से गर्म होने के कारण होती है। वास्तव में पवन ऊर्जा का मूल स्रोत सौर ऊर्जा ही है अर्थात् हम पवन ऊर्जा के रूप में परोक्षतः ( Indirectly ) सौर ऊर्जा का ही उपयोग करते हैं।

पवन की चाल एवम दिशा को प्रभावित करने वाले कारक

पवन की चाल तथा दिशा को प्रभावित करने वाले अनेक कारक है, जिनमें से पृथ्वी का अपने अक्ष के परितः घूर्णन गति करना भी एक कारण है। इसके अतिरिक्त अन्य स्थानीय प्रभाव भी होते है, जिनके कारण वायु का घनत्व असमान हो जाता है जिससे पवन बहने लगती है। इन स्थानीय प्रभावों के कारण पवन की चाल 5-10 किलोमीटर/घण्टा (शान्त वायु के लिए) से लेकर (100-150) किलोमीटर/घण्टा तक (तूफान के समय) हो सकती है।

पवन ऊर्जा के अनुप्रयोग

पवन चक्की (Wind Mill)-

वायु की गतिज ऊर्जा का उपयोग करके ही पवन चक्की बनायी गयी है।

पवन चक्की में विशेष आकृति के बड़े- बड़े ब्लेड होते हैं। जब बहती वायु इनसे टकराती है तो यह घूमते हैं। ब्लेडों की घूर्णन गति की सहायता से अन्य सम्बन्धित भागों को गति करा कर आवश्यक कार्य किया जा सकता है।

इनके द्वारा कुएँ से पानी खींचा जा सकता है। चित्र के अनुसार ब्लेड का मध्य भाग यू आकार के मोड़ वाले क्रैक से सम्बन्धित करते हैं। इसके द्वारा ब्लेड की घूर्णन गति को ऊपर-नीचे की गति में परिवर्तित करते हैं। अतः यदि इसका सम्बन्ध जल पम्प की पिस्टन छड़ से कर दें तो यह छड़ ऊपर-नीचे होकर पिस्टन को गति देती है तथा पानी खिंचने लगता है।

पवन ऊर्जा द्वारा पाल नाव खेना

नाव को पानी में चलाने के लिए पवन ऊर्जा अर्थात् वायु गतिज ऊर्जा का उपयोग करते हैं।

पवन ऊर्जा ( Wind Energy ) से नाव को चलाने के लिए लकड़ी के पोल द्वारा चित्र के अनुसार, एक बड़ा कैनवास कपड़ा (पाल) लगाते हैं।
जब वायु गति से इस कपड़े पर पड़ती है तो उस पर बल लगता है तथा नाव वायु की गति की दिशा में आगे बढ़ने लगती है इस प्रकार पवन ऊर्जा से ही नाव आगे बढ़ती जाती है। परन्तु इस विधि में परेशानी यह है कि नाव वायु गति दिशा में ही आगे बढ़ सकती है। पाल द्वारा नाव को ऐच्छिक दिशा में घुमा भी सकते हैं।

Aditya

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