Rain water harvesting in hindi | रेन वाटर हार्वेस्टिंग क्या है?

जल संचयन Water Harvesting

जल संचयन - विश्व की जनसंख्या में वृद्धि होने से कृषि योग्य भूमि का निरन्तर हास होता जा रहा है। अधिक जनसंख्या के कारण लोगों को भोजन उपलब्ध कराने हेतु अधिक कृषि योग्य भूमि की आवश्यकता है तथा इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए पूरी मानव जाति कृषि अयोग्य भूमि तथा तटीय भूमि (Marginal Areas) पर भी खेती किए जाने की आवश्यकता निरन्तर महसूस कर रही है। इन क्षेत्रों की अधिकांश भूमि अर्द्धशुष्क (Semi-arid) तथा शुष्क क्षेत्रों के अन्तर्गत आती है। इन क्षेत्रों में प्रायः वर्षा अनियमित रूप से होती है।

जब वर्षा होती भी है तो वर्षा का अधिकांश जल पृथ्वी की सतह से ही बह जाता है जिसके कारण वहाँ पर निवास करने वाले लोगों तथा पशुओं को सूखे का सामना करना पड़ता है, यहाँ तक कि पीने के पानी के लिए भी तरसना पड़ता है। सूखे की स्थिति से बचने तथा कृषि को पर्याप्त पानी पहुँचाने के लिए वहाँ के लोगों को काफी कठिन तथा अधिक धन खर्च वाले उपायों को अपनाना पड़ता है।

इसी कारण वर्तमान समय में मानव जाति के समक्ष ‘वर्षा जल संचयन' (Rain Water Harvesting) एक मितव्ययी तथा सरल उपाय के रूप में उभर कर सामने आया है |

जल संचयन वास्तव में बहते हुए जल को उपयोगी कार्यों में लगाने हेतु एकत्रीकरण करने की एक विधि है। सतही जल के बहने से मृदा अपरदन (Soil Erosion) की समस्या से निपटने के साथ ही इस जल का संचय व इसका उपयोग विभिन्न कार्यों में किया जाता है।

हमारे देश की जलवायु मानसूनी होने के कारण मानसून के समय ही वर्षा होती है तथा किसान आज भी मानसूनी वर्षा पर ही निर्भर करते हैं तथा किसानों को फसलों की सिंचाई के लिए मात्र वर्षा ऋतु में ही जल उपलब्ध हो पाता है। किसानों की आधी से अधिक फसल जल के अभाव में ही नष्ट हो जाती है।

अतः उपरोक्त को दृष्टिगत रखते हुए सभी किसानों को वर्षा जल संचयन करने की प्रवृत्ति (Tendency) विकसित करने की जरूरत है ताकि छोटे-छोटे तालाबों में वर्षा जल का संचयन करके भयंकर सूखे की परिस्थिति से भी आसानी से निपटा जा सकता है। वर्षा जल संचयन करने के लिए एक आधारभूत सिद्धान्त का प्रयोग किया जाता है। इसमें एक बड़े तालाब में जल को एकत्र करके तथा नालियाँ बनाकर उनके द्वारा कृषि भूमि को सिंचित किया जाता है।

जल संचयन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background of Water Harvesting)

शताब्दियों से मानव जल संरक्षण करने के लिए इसका संचय विभिन्न तरीकों को अपनाकर करता आया है। काफी समय पूर्व मध्य पूर्वी देशों में मानव जाति 'वादी विधि' (Wadi Method) को अपनाकर कृषि की सिंचाई करते थे। इस विधि में किसी मानव निर्मित स्रोत में जल को एकत्र करके नालियाँ बनाकर जल की सिंचाई की जाती रही है। इजरायल देश के नीमेव मरूस्थल (Nemave Desert) में 4000 वर्ष पूर्व अपनायी जाने वाली पद्धति में पहाड़ी इलाकों के पेड़ों को काटकर वर्षा से मिलने वाले जल के प्रवाह को बढ़ाकर मैदानी इलाकों की ओर मोड़ दिया जाता था।

भारतवर्ष के खादिन पद्धति (Khadin System) में बाढ़ के जल को भूमि के बँधों से रोका जाता तथा बँधों के पीछे खेती की जाती थी तथा पानी के धीरे-धीरे छनकर आने से खेती में अच्छी उपज होती थी परन्तु उपरोक्त सभी विधियों के प्रचार-प्रसार में कमी के कारण यह मात्र कुछ स्थानों पर ही अपनाई जाती थी

सन 1970 से 1980 तक के दशक में अफ्रीका के सूखे की चपेट में आने से जल संचयन की उपयोगिता के प्रति पूरे विश्व में जागरूकता प्रारम्भ हो गई थी जिसके फलस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इजरायल आदि के अल्प संसाधन (Poor Resources) युक्त क्षेत्रों में तथा अफ्रीका के शुष्क क्षेत्रों में जल संचयन की विधियों ने व्यापक रूप ले लिया। परिणामस्वरूप आज भारत सहित पूरे विश्व में जल संचयन के लिए प्राचीन तकनीकों के साथ ही नवीन तकनीकों का उपयोग समाज के प्रत्येक वर्ग द्वारा अपने आर्थिक व सामाजिक स्तर के अनुरूप किया जा रहा है।

जल संचयन की परिभाषा तथा वर्गीकरण (Definition and Classification of Water Harvesting)

जल संचयन का आशय समझने के पश्चात इसको परिभाषित करना सरल हो जाता है। अतः जल संचयन को व्यापक रूप से हम निम्न प्रकार परिभाषित कर सकते हैं-

'बहते हुए जल को उत्पादक बनाने हेतु एकत्र करना।' “Collection of runoff for its productive use"

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वर्षा जल संचयन (Rain Water Harvesting)

शहरी क्षेत्रों में फुटपाथ तथा सड़के बनाए जाने के कारण भूमि वर्षा जल को सोख नहीं पाती जबकि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में जल तेजी से बहकर निकटस्थ नदियों में चला जाता है जिससे यहाँ की भूमि वर्षा के तुरन्त बाद ही सूख जाती है। यदि यह वर्षा जल व्यर्थ बहने से रोककर पुनः भूमि के भीतर रिसकर पहुँच सके तो यह भूमिगत जल के स्तर को भी व्यवस्थित रख सकता है।

अतः धरती पर बारिश की प्रत्येक बूँद को मोती के समान एकत्र किया जाना चाहिए। इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए वर्षा जल का संचयन प्राकृतिक जलाशयों तथा मानव निर्मित टैकों में किया जाता है तथा भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है। अतः बाद की जरूरतों को पूरा करने के लिए वर्षा जल का संचयन इमारतों की छतों तथा भूमि के भीतर किया जाता है। वर्षा जल संचयन वास्तव में मानव जाति के द्वारा भविष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति का एक ऐसा माध्यम है जो प्रत्येक देश की नागरिक के विकास में सहायक सिद्ध होता है।

वर्षा जल संचयन का महत्त्व (Importance of Rain Water Harvesting)

वर्षा जल को संचय करने से कई लाभ होते हैं, अतः इसका निम्न महत्त्व है-

  1. यह भूमिगत जल के अपक्षय (Depletion) को रोकता है।
  2. यह भूमिगत जल के स्तर (Ground Water Level) को भी संरक्षित रखने में सहायक है ।
  3. यह समुद्री जल को भूमि की ओर बहने से रोककर समुद्री जल के स्तर को पूर्ववत बनाए रखने में सहायक है।
  4. यह वर्षा के समय सतही जल (Surface Water) को बहने से रोकता है।
  5. वर्षा जल संचयन के महत्त्व को शहर नियोजकों (Town Planners) ने भी प्रमुखता दी है तथा प्रत्येक इमारत की छत पर वर्षा जल के संचयन को अनिवार्यतः अपनाने का प्रयत्न भी किया है।
  6. सरकार ने वर्षा जल के संचयन व्यवस्था से विहीन इमारतों को सीवेज तथा पानी के कनेक्शन न देने का फैसला भी किया है।
  7. केन्द्रीय भूमिगत जल बोर्ड (Central Ground Water Board, CGWB) ने भी वर्षा जल संचयन की महत्ता को स्वीकार करके वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देने का बीड़ा उठाते हुए दिल्ली तथा अन्य नगरों की सरकारी इमारतों में वर्षा जल संचयन की उचित व्यवस्था होने का प्रश्न उठाया है तथा कड़े कानून के तहत कार्यवाही किए जाने को प्राथमिकता दी है।

वर्षा जल संचयन की विधियाँ (Methods for Rain Water Harvesting)

वर्षा की हर बूँद कीमती है। अतः इसको संचित करके भविष्य की माँग को पूरा करने में प्रयोग किया जा सकता है। यहाँ पर प्रश्न यह है कि वर्षा जल का संचय किस प्रकार किया जाए। अतः जल के संचय की विधियों पर प्रकाश डालना आवश्यक प्रतीत होता है। वर्षा जल संचयन की प्रमुख दो विधियाँ हैं-

1) वर्षा जल संचयन की प्राचीन विधियाँ (Ancient Methods of Rain Water Harvesting)

वादी तथा खादिन विधियों का प्रयोग मानव सदियों से करता आया है। इनमें वर्षा जल को भूमि की सतह पर एकत्र किया जाता है। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों, सिंचाई कूपों तथा मंदिर के तीर्थों आदि में जल को जमा किया जाता है परन्तु शहरी क्षेत्रों में खुले स्थानों की कमी तथा अत्यधिक भवन निर्माण के कारण इस विधि का बहुत अधिक महत्त्व नहीं है। अतः यहाँ पर जल संग्रहण की कृत्रिम विधियों को अपनाना अनिवार्य आवश्यकता बन चुकी है।

2) जल संचयन की आधुनिक विधियाँ (Modern Methods of Rain Water Harvesting)

जल संचयन की आधुनिक विधियों का प्रयोग वर्षा जल का अधिकतम संग्रहण भूमिगत जल के रूप में करना है। अतः इसी प्रयोजन को ध्यान में रखते हुए विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जा रहा है-

i) नीगोरिम गड्ढा विधि (Negorim Catchment Method)

इस विधि को 'नीगोरिम विधि' (Negorim Method) भी कहते हैं। इसमें हीरे की आकृति अथवा 'V' की आकृति में भूमि को उठाया जाता है तथा जल के रिसाव के लिए गड्ढे खोदे जाते हैं तथा इन्हीं गड्ढों में जल को एकत्र किया जाता है। यह विधि केवल उन्हीं क्षेत्रों के लिए उपयोगी है जहाँ पर कुछ ही पौधे तथा पेड़ों युक्त असमतल भूमि हो परन्तु पेड़ों के मध्य जुताई करना मुश्किल होने के कारण यह विधि कुछ ही लोगों द्वारा प्रयोग की जा रही है।

ii) सीढ़ीदार खेत विधि (Contour Bunds Method)

इस विधि में सीढ़ीदार खेतों में ढलान वाले गड्ढे खोदकर वर्षा जल का संग्रह किया जा सकता है। यह विधि पेड तथा घास उगाने हेतु उपयोगी है। यह विधि 5 से 10 मीटर चौड़े, सीढ़ीदार खेतों में ही प्रयुक्त की जानी चाहिए। जहाँ पर काफी पेड़ों को उगाना हो वहाँ के लिए यह सर्वाधिक उपयुक्त विधि है। इस विधि को केवल पहाड़ी या ढलान वाले क्षेत्रों में ही अपनाया जा सकता है।

iii) अर्ध चन्द्राकार बाँध विधि (Semi Circular Bunds Method)

इस विधि का प्रयोग करने के लिए हल्के ढलान वाले अर्ध चन्द्राकार गड्ढे खोदने पड़ते हैं। इस आकार के गड्ढे खोदने के लिए ढ़लान वाले क्षेत्र अधिक उपयुक्त रहते हैं क्योंकि यह सीढ़ीदार खेतों में श्रृंखलाबद्ध रूप से खोदे जाते हैं। इस विधि के उपयोग से पशुओं के लिए चारे (Fodder) तथा पेड़ों को उगाया जा सकता है। यह विधि हस्तश्रम (Hand labour) वाले स्थानों पर अधिक उपयोगी है।

हमारे देश के राजस्थान राज्य के अलवर जिले में पानी के सभी कुएँ सूखने के बाद पीने के पानी की कमी होने के फलस्वरूप इस विधि को अपनाते हुए अर्द्ध चन्द्राकार आकृति के बांध बनाकर उनमें एक सिरे से पानी भेजा गया जिससे पानी के रिसाव से भूमिगत जल का स्तर बढ़ा तथा सभी कुएं पुनर्जीवित हो सके हैं। आज राजस्थान के कई इलाकों में यह व्यवस्था लागू करके भूमिगत जल के स्तर को बढ़ाया जा सकता है।

iv) ट्रैपीजोएडल बाँध विधि (Trapezoidal Bunds Method)

इस विधि को उपयोग करने के लिए लम्बे ढालू क्षेत्र का होना आवश्यक है। इन्हीं क्षेत्रों में खोदे जाते हैं। इन गड्ढ़ों का आकार एक चौड़े टब "" जैसी आकृति का होता है। इन गड्ढ़ों में वर्षा जल के एकत्र होने से इनके पूरी तरह भर जाने के बाद किनारों से जल का उफान होता है जिससे फसलों में पानी पहुँचने से सिंचाई की जाती है। यह विधि अर्द्ध शुष्क तथा शुष्क दोनों क्षेत्रों में प्रयोग की जाती है।

v) सीढ़ीदार पथरीले बाँध विधि (Contour Storm Bunds Method)

इस विधि में पत्थर बाहुल्य क्षेत्रों में सीढ़ीदार खेतों के किनारे पत्थर रखकर बाँध बनाए जाते हैं तथा जल प्रवाह को कम करके खेतों की सिंचाई की जाती है। इस विधि के प्रयोग हेतु सीढ़ीदार खेतों की लम्बाई कम से कम 35 मीटर होनी चाहिए।

vi) फिल्टर लगी खुला कुआँ विधि (Open Well Method with Filter Pump)

इन मानव निर्मित कुओं की गहराई गड्ढ़ों से ज्यादा होती है तथा इनकी तली में फिल्टर भी लगाया जाता है ताकि फिल्टर किया गया जल अशुद्धि मुक्त होकर ही भूमिगत जल के रूप में संचित किया जा सके। इनका प्रयोग सर्वसुलभ होता है।

vii) घरों की छतों पर जल एकत्रण विधि (Rain Water Harvesting Methods on Roof Tops )

घरों की छतों पर वर्षा जल को एकत्र करके पहले एक पाइप द्वारा जमीन में खोदे गए कुएँ में ले जाया जाता है। जहाँ से इस जल का उपयोग इसी के निकट फिक्स किए गए हैण्ड पम्प के माध्यम से घरेलू कार्यों को सम्पन्न करने के लिए किया जा सकता है।

अतः स्पष्ट है कि वर्षा जल संचलन की उपरोक्त विभिन्न विधियों को अपनाकर इसका उपयोग भविष्य की जरूरतों को पूरा करने, खेती करने तथा पीने योग्य भूमिगत जल को प्राप्त करने में किया जा सकता है।

वर्षा जल संचयन से लाभ (Advantages of Rain Water Harvesting)


वर्षा जल संचयन से निम्नलिखित लाभ हैं-

  1. यह भूमिगत जल के स्तर को गिरने से बचाता है तथा उसे सुधारने में सहायता भी करता है।
  2. यह मिट्टी के कटाव तथा मृदा अपरदन (Soil Erosion) में कमी लाता है।
  3. यह मानसूनी जल को अधिक मात्रा में संचित करने में सहायक है। 4) यह विधि प्राकृतिक तरीके से भूमिगत जल स्तर को पुनः चार्ज करने का अच्छा साधन है।
  4. यह समस्त मानव जाति को बाढ़ की विभीषिका से बचाता है।
  5. यह जल पशुधन के पीने के पानी कृषि, सहित घरेलू कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है।
  6. यह भूमिगत जल स्तर को 4 से 6 महीने तक स्थाई रखने में सहायक है।
  7. इसके लाभों को देखते हुए तमिलनाडु राज्य सरकार ने 30 मई, 2014 को यह घोषणा की है कि चेन्नई के विभिन्न स्थानों पर वर्षा जल को इकट्ठा करने के लिए लगभग 50,000 ढाँचों की व्यवस्था की जानी है ताकि पूरे चेन्नई में पानी की कमी को काफी हद जक नियन्त्रित किया जा सके।
  8. तमिलनाडु में 4,000 मन्दिरों में वर्षा जल संग्रहण टैंक हैं। जो जमीन के जल का पुनर्भरण (Recharge) भी करने में मददगार साबित हुए हैं
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