Vivah Kise Kahte Hai विवाह के प्रकार और उद्देश्य

Vivah Kise Kahte Hai, Vivah Ka Arth Kya Hai

डॉ के एम् कपाड़िया के अनुसार विवाह एक "धार्मिक संस्कार" है।

विवाह को शादी भी कहा जाता है , इसमें दो लोगो के मध्य एक सामाजिक और धार्मिक रूप से मान्यता प्राप्त मिलन होता है। साथ ही उन दो लोगो के परिवारों के मध्य अधिकारों और दायित्वो को भी स्थापित करता है।

विवाह' शब्द के मुख्य रूप से दो अर्थों प्रचलित है। इसका पहला अर्थ है- विवाह वह क्रिया, संस्कार, विधि या पद्धति है; जिससे पति-पत्नी के 'स्थायी'-संबंधो का निर्माण होता है।

विवाह का एक दूसरा अर्थ है- समाज में प्रचलित एवं स्वीकृत विधियों द्वारा स्थापित किया जानेवाला दांपत्य संबंध और पारिवारिक जीवन भी है।

Vivah-Kise-Kahte-Hai-Vivah-Ka-Arth-Kya-Hai,air bud

 

हिंदू विवाह के प्रकार

1 ब्रह्म विवाह (Brahma Vivah Kya Hai)

ब्रह्म विवाह प्रशस्त विवाह का सबसे पहला स्वरूप है यह विवाह सबसे प्रचलित व उत्तम माना जाता है इसके अंतर्गत कन्या के माता-पिता एक योग्य ज्ञानवान विद्वान सुशील तथा बौद्धिक दृष्टि से परिपूर्ण व्यक्ति का चुनाव करके उसको अपने घर आमंत्रित करते हैं और कन्या को वस्त्रों आभूषणों से सुसज्जित कर के बिना किसी प्रकार का लोग किए वर्ग को दान करते है।

2 देव विवाह

इस प्रकार के विवाह में कन्या का पिता एक यज्ञ या होम की व्यवस्था करता है वस्त्र और अलंकार से सुसज्जित कन्या का दान उस व्यक्ति को करता है, जो उस यज्ञ को उचित ढंग से करता है संक्षेप में विस्तृत यज्ञ करने में कुशल पुरोहित को अलंकार युक्त कन्या को देना ही देव विवाह के कहलाता है।

3 आर्ष विवाह

आर्ष ऋषि को कहते हैं हिंदू समाज में ऋषि का भी महत्वपूर्ण स्थान है इसलिए जो भी इसी विवाह के लिए इच्छुक होता था उसे अपने ससुर को एक गाय अथवा एक बैल अथवा इनकी दो जोड़ी देने पड़ती थी। इस प्रकार की भेंट लेकर कन्या के माता-पिता कन्या को ऋषि की पत्नी के रूप में सौंप देते थे।

4 प्रजापत्य विवाह

यह विवाह भी ब्रह्म विवाह जैसा ही है वर और वधु को वैवाहिक जीवन के संबंध में उपदेश देकर और तुम दोनों मिलकर गृहस्थ धर्म का पालन करना और तुम दोनों का जीवन सुखी और समृद्धि साली हो यह कहकर विधिवत  पूजा करके कन्या का दान ही प्रजापत्य विवाह है।

5 गांधर्व विवाह(Gandharv Vivah Kya Hota Hai)

यह विवाह अप्रशस्त विवाह माना जाता है इसमें बिना किसी पूर्व योजना के बिना किसी नियम तथा बिना किसी संस्कार के या तो अनायास प्रेम हो जाने से या वासना के शिकार हो जाने से जब स्त्री तथा पुरुष का शारीरिक संपर्क हो जाता है तो समाज ऐसे विवाह को स्वीकृति देता है इस विवाह में माता-पिता तथा अन्य संबंधियों को पूछा नहीं जाता है।

6 राक्षस विवाह

यह विवाह भी अप्रशस्त है किसी कन्या को जबरदस्ती पकड़ लाना रोती बिलखती को उठा लेना या युद्ध में आदमी को जीत कर ले आना राक्षस विवाह कहलाता है या प्रथा छतरी विवाह भी कहलाती है।

7 असुर विवाह

यह ब्रह्म विवाह का उल्टा है इस विवाह में कन्या के इच्छुक व्यक्ति को कन्या के पिता को कन्या मूल्य चुकाना होता है इसमें कन्या का मूल्य पहले से ही निश्चित हो जाता है और उसे चुकाए बिना विवाह नहीं हो सकता यह एक प्रकार का कन्या विक्रय है हिंदू जाति के निम्न वर्ग में इसी प्रकार का प्रचलन आज भी पाया जाता है।

8 पिशाच विवाह

यह विवाह भी अब अप्रशस्त माना जाता है जब निंदरित शराब आदि पी हुई या अन्य प्रकार से उन्मत्त स्त्री के साथ किसी ना किसी प्रकार की जबरदस्ती या धोखा देकर यौन संबंध स्थापित कर लिया जाता है तो उसे पिशाच विवाह कहते हैं।

हिन्दू विवाह के उद्देश्य बताइए (Aims Of Hindu Marriage)

धार्मिक कार्यों की पूर्ति

प्राचीन काल से ही हिंदू विवाह का प्रमुख आधार धार्मिक कार्य की पूर्ति माना गया है धर्म से आशय वास्तव में कर्तव्य एवं दायित्व का सही निर्वाह ही था उन्हें यज्ञ की संज्ञा दी जाती थी किंतु व्यक्ति को इन यज्ञ की अनुमति उसी स्थिति में दी गई जबकि वह विवाह बंधनों में बंद कर गृहस्थ आश्रम का अधिकारी हो व्यक्ति को कर्तव्य स्वरूप पांच यज्ञ करने पड़ते थे जिसमें देव यज्ञ,ऋषि यज्ञ,अतिथि यज्ञ एवं भूत यज्ञ प्रमुख्य है।

कपाड़िया ने भी लिखा है "इस प्रकार विवाद प्राथमिक रूप से कर्तव्यों की पूर्ति के लिए होता है इसीलिए विवाह का मौलिक उद्देश्य धर्म था"

प्रजा या पुत्र की प्राप्ति

हिंदू विवाह का दूसरा प्रमुख उद्देश्य पुत्र की प्राप्ति कर एक ओर समाज की निरंतरता को कायम रखना था तथा दूसरी ओर मृत्यु के पश्चात पिंडदान तथा तर्पण आदि कर मृतक की आत्मा की शांति की कामना करना था।

मनु - ने भी संतानोत्पत्ति को हिंदू विवाह का दूसरा प्रमुख उद्देश्य बताया है महाभारत में भी विभिन्न स्थलों पर संतानोत्पत्ति को ही विवाह का परम उद्देश्य माना गया है।

मरडोक के मत में मानव समाज में विवाह के तीन प्रमुख उद्देश्य होते हैं

  1. यौन इच्छा की पूर्ति
  2. आर्थिक सहयोग
  3. बच्चों का पालन पोषण

 गिलिन एवं गिलिन के अनुसार विवाह संस्था निम्न उद्देश्यों की पूर्ति करती है

  1. पति व पत्नी के मध्य लैंगिक संबंधों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करना
  2. प्रजनन प्रक्रिया द्वारा परिवार की स्थापना
  3. पति व पत्नी के मध्य आर्थिक सहयोग स्थापित करना
  4. पति व पत्नी के मध्य भावात्मक सम्बंध स्थापित करना
  5. वंशानुक्रम एवम नातेदारी की स्थापना में योग देना

 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url