Prachin Bhartiya Itihas Mahatva Or Itihas Ke Srot

प्राचीन भारतीय इतिहास (Prachin Bhartiya Itihas)

बीते हुए समय अर्थात भूतकाल में घटित हुई घटनाओ के वृतांत (विवरण) को इतिहास कहते है। किसी व्यक्ति, समाज या किसी देश की महत्त्वपूर्ण, विशिष्ट एवं सार्वजनिक क्षेत्र से सम्बन्धित घटनाओं का कालक्रम से लिखा हुआ विवरण अथवा तथ्यों घटनाओं की काल क्रमानुसार विवेचन को इतिहास कहते है।

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इतिहास के क्षेत्र को व्यापक अर्थों में अत्याधिक विस्तृत देखकर इतिहासकारो ने अध्ययन की सुविधा के लिए भारत के इतिहास को तीन भागों में विभक्त किया है।

  1. प्राचीन भारतीय इतिहास
  2. मध्यकालीन भारतीय इतिहास
  3. आधुनिक भारतीय इतिहास

प्राचीन भारतीय इतिहास का महत्व (Prachin Bhartiya Itihas Ka Mahatva)

(1) भूतकाल के ज्ञानार्थ

प्राचीन भारतीय इतिहास का अध्ययन हमारे अतीत के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास की कहानी बताता है। किस राजा ने कौन सी ईमारत , मकबरा या फिर किसी प्रकार की स्थापना की हो ये सब विकास किया हो। संगठन इकाई, ग्राम,नगर, समूह एवं राष्ट्र तथा संघ का विकास एवम पतन कैसे हुआ। प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था साहित्य कला दर्शन की पूरी जानकारी प्राचीन भारतीय इतिहास से होती है।

(2) वर्तमान की दृष्टि से महत्व

अतीत की घटनाओं से शिक्षा ग्रहण करके ही वर्तमान में घटित हो रही घटनाओं को सही स्वरूप प्रदान किया जा सकता है।

उदाहरण के लिए अशोक समुद्रगुप्त हर्ष जैसे शासकों ने कभी भी अपने प्रचार पर किसी धर्म को जबरदस्ती थोपने का प्रयत्न नहीं किया था। इन शासकों के शासनकाल में प्रत्येक क्षेत्र में विकास हुआ किन्तु जब किसी शासन ने इसके विपरीत नीति अपनाई तो उसका उसके वंश का पतन हुआ था।

हम प्राचीन भारत में गठित विभिन्न घटनाओं के परिणाम से वर्तमान में विद्यमान संप्रदायिकता ऐसे प्रश्नों का हल हो सकते हैं।

(3) भविष्य की दृष्टि से महत्व

प्राचीन भारतीय इतिहास का अध्ययन हमें दोषपूर्ण  तथ्यों से अवगत कराता है। जो भविष्य के स्वर्णिम निर्माण में बाधक हो सकते हैं।

जाति व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था, बाह्य आडंबर, कर्मकांड, स्त्री पुरुष असमानता जैसे प्रश्न प्राचीन काल से हमारा पीछा करते चले आ रहे हैं।

इन प्रश्नों ने प्रत्येक राजवंश धर्म व समाज के उत्थान और पतन के प्रश्नों को प्रभावित किया था। अतीत के गर्भ में छिपे इन प्रश्नों के संबंध में जो भी कदम उठाए गए उस से निकले परिणाम जिन्होंने भविष्य प्रभावित किया भविष्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

(4) राजनीतिक सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय एकीकरण की दृष्टि से

राजनीतिक एकता के महत्व को समझ कर ही चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक, समुन्द्र गुप्त  आदि शासकों ने देश को राजनीतिक एकता के सूत्र में बांधने की कोशिश की। प्राचीन भारतीय इतिहास का अध्ययन बताता है कि जब जब देश की राजनीतिक एकता टूटी तब तब  विदेशियों ने भारत पर आक्रमण किया।

अतः राजनीति एकता के महत्व को समझने की दृष्टि से प्राचीन भारतीय इतिहास का अध्ययन महत्वपूर्ण है।  यही नहीं प्राचीन भारत का अध्ययन राष्ट्रीय एकीकरण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

जहां तक्षशिला नालंदा काशी मथुरा अवंतिका तीर्थ स्थलों ने देश में सांस्कृतिक एकता प्रदान की तो वही संस्कृत पालि प्राकृत भाषा में देश की मौलिक एकता प्रदान की है।

इस तरह उपरोक्त की गई विवेचना से हम कह सकते हैं कि प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन का महत्व भूत वर्तमान भविष्य और राजनीतिक व राष्ट्रीय एकीकरण तथा सांस्कृतिक एकीकरण की दृष्टि से बहुत उपयोगी है।

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्त्रोत (Prachin Bhartiya Itihas Ke Srot)

इतिहास उन घटनाओं का वृतांत होता है जो भूतकाल में घटित हुई हो, अतः मूलतः महत्वपूर्ण तत्व को चुनकर अतीत के पुनर्निर्माण करने को इतिहास कहते हैं। यह महत्वपूर्ण तथ्य में विभिन्न रूपों से प्राप्त होते हैं जिन्हें इतिहास के स्रोत या साधन कहा जाता है।

प्राचीन भारतीय इतिहास का ज्ञान कराने वाले मुख्य दो साधन हैं। यह है ; साहित्यिक तथा पुरातात्विक स्रोत

साहित्यिक स्रोत

प्राचीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालने वाली सामग्री प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। अध्ययन  की सुविधा के लिए साहित्यिक सामग्री को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया गया है:-

(1) धार्मिक ग्रंथ

धार्मिक ग्रंथ से तात्कालिक सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है। धर्म ग्रंथों में ब्राह्मण, बौद्ध व जैन धर्म से संबंधित निम्नलिखित ग्रंथ है।

(अ)ब्राह्मण ग्रन्थ

प्राचीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालने वाले ब्राह्मण धर्म से सम्बंधित अनेक ग्रन्थ है, जिनमे से निम्न प्रमुख है।

(i)वेद

आर्य के प्राचीन ग्रंथ वेद है। वेदों की कुल संख्या 4 है जिनमें प्राचीनतम ऋग्वेद है। ऋग्वेद के अतिरिक्त अन्य वेद सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद है।

(ii)ब्राह्मण

यज्ञ एवं कर्मकांड के विधान को समझने के लिए उनकी रचना की गई थी। प्रमुख ब्राह्मण ऐतरेय, शतपंथ, पंचविश व गोपथ है।

(iii)आरण्यक

आरण्यक ऐसे ग्रन्थों को कहा जाता है जिनका अध्ययन वन में किया जा सके।

(iv) उपनिषद

उपनिषद किसी एक काल में अथवा किसी विशेष व्यक्ति द्वारा रचित नहीं है। इनकी रचना में दीर्घकाल तथा विभिन्न लोगों का योगदान रहा है।

(v) वेदांग

वेदांग से तत्कालीन समाज एवं धर्म पर विस्तृत प्रकाश पड़ता है, वेदांग संख्या में छह हैं। शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द एवं ज्योतिष

(vi) महाकाव्य

वेदों के पश्चात महाकाव्य का विशिष्ट महत्व है। इनकी गणना ऐतिहासिक साहित्य के अंतर्गत की जाती है। ये महाकाव्य है रामायण एवं महाभारत।

(vii) पुराण

पुराणों की संख्या 18 है। परंतु इनमें से पांच का ही अधिक ऐतिहासिक महत्व है। यह है मत्स्य, भागवत, विष्णु, वायु और ब्राह्मण पुराण

(ब) बौद्ध धर्म ग्रंथ

ब्राह्मण धर्म ग्रंथों के समान ही बौद्ध धर्म ग्रंथ से भी प्राचीन भारतीय इतिहास के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है। बौद्ध धर्म ग्रंथ निम्न है।

(i) पिटक

पिटकों की संख्या तीन है। यह है विनय पिटक, सूत्र पिटक व अभिदम्भ पिटक, तीनों पिटको की भाषा पाली है।

(ii) जातक

बौद्ध ग्रन्थों में जातक का दूसरा प्रमुख स्थान है। जातक में महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों का विवरण है, जो 549 कथाओ के रूप में है।

(स) जैन ग्रन्थ

बौद्ध ग्रंथों के सामान जैन ग्रंथ भी पूर्णतया धार्मिक होते हुए भी ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। जैन ग्रंथों में भद्रबाहुचरित, परिशिष्टपर्व, पुण्यश्रव कथाकोश, लोक विभाग आदि प्रमुख हैं।

(2) धर्मनिरपेक्ष साहित्य

धार्मिक ग्रंथों के अतिरिक्त अनेक ऐसे ग्रंथ उपलब्ध हैं जो किसी धर्म से सीधा संपर्क नहीं रखते अथवा किसी धर्म विशेष से प्रभावित नहीं हैं। धर्मनिरपेक्ष साहित्य को दो भागों में बांटा जा सकता है।

(अ) कल्पना प्रधान लोक साहित्य जीवन चरित

विदेशियों के द्वारा भारत के विषय में बताया गए वर्णन के अतिरिक्त संपूर्ण धर्मनिरपेक्ष साहित्य ईसी शीर्षक के अंतर्गत आते हैं। कुछ प्रमुख ग्रंथ जो ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व रखते हैं निम्नलिखित हैं।

(i) अर्थशास्त्र

इस ग्रंथ की रचना चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री चाणक्य ने ईसवी पूर्व चौथी शताब्दी में की थी। मौर्य काल के विषय में जानकारी वाली सबसे प्रमाणिक पुस्तक है।

(ii) मुद्राराक्षस

इस नाटक की रचना विशाखा दत्त ने की थी। इसमें नंद राजा के पतन तथा चाणक्य द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बनाए जाने का उल्लेख है।

(iii) कालिदास की रचना

कालिदास द्वारा रचित ग्रंथों से तत्कालिक संस्कृति पर व्यापक प्रकाश पड़ता है।

(iv) पृथ्वीराज रासो

चंदबरदाई द्वारा लिखित इस ग्रंथ से चौहान वंश के शासक पृथ्वी राज के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

(v) हर्षचरित

हर्षचरित की रचना सातवीं सदी में बाणभट्ट ने की थी। इस ग्रंथ से हर्ष कालीन घटनाओं की जानकारी प्राप्त होती है।

(vi) गार्गी संहिता

इसमें भारत पर यवनो के आक्रमण का उल्लेख है।

(vii) राज तरंगिणी

राज तरंगिणी का रचनाकार का कल्हण नामक विद्वान था। इस ग्रंथ में कश्मीर के इतिहास के विषय में विशेष रुप से जानकारी मिलती है।

(viii) विक्रमांकदेव चरित

इस ग्रंथ में चालुक्य वंश के इतिहास के विषय में जानकारी मिलती है। इस ग्रंथ की रचना बिल्हण ने की थी।

(ब) विदेशी यात्रियों के वृतांत

समय-समय पर अनेक विदेशी विद्वानों ने भारत की यात्रा की वह अपने संस्मरण लिखे। जिनमें मेगस्थनीज फाह्यान ह्वेनसांग आदि प्रमुख हैं।

(i) यूनानी वृतांत

यूनानी लेखकों में हेरोडोटस प्राचीनतम लेखक है। हेरोडोटस ने पांचवीं शताब्दी ईस्वी पूर्व में भारतीय सीमा प्रांत व हखमी साम्राज्य के मध्य राजनैतिक संपर्क पर प्रकाश डाला था।

सिकंदर के कुछ समय पश्चात मेगास्थनीज चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में यूनानी राजदूत के रूप में आया था। उसने अपनी पुस्तक "इंडिका" में भारतीय संस्थाओ, भूगोल, कृषि आदि के विषय में लिखा है।

(ii) चीनी वृतांत

यूनानी ग्रंथों के समान ही चीनी यात्रियों के वृतांत भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें उन अनेक मध्य एशियाई जातियों के परिभ्रमण का उल्लेख है। जिन्होंने भारत को प्रभावित किया।

सुमाचीन चीन का प्रथम इतिहासकार था जिसके ग्रंथ से भारत पर प्रकाश पड़ता है। फाह्यान तथा ह्वेनसांग नामक चीनी यात्रियों के वृतांत से भी भारत के विषय में अत्याधिक महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

(iii) तिब्बती वर्तन्त

तिब्बती लामा तारानाथ द्वारा रचित कँगयुर व तन्गयुर का भी विशिष्ट ऐतिहासिक महत्व है।

(iv) मुसलमान यात्रियों के वृतांत

मुसलमान यात्रियों में अलबरूनी विशेष रूप से उल्लेखनीय है, क्योंकि वह संस्कृत भी जानता था उसने तहकीक-ए-हिंद की रचना की जिससे तत्कालीन भारत के विषय में विस्तृत जानकारी मिलती है।

पुरातात्विक स्रोत

साहित्यिक स्रोत से पुरातात्विक स्रोत अधिक प्रमाणित माने जाते हैं, क्योंकि उनमें कवि की परिकल्पना अथवा लेखक की कल्पना शक्ति के लिए स्थान का नही होता है।

(1) अभिलेख

प्राचीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालने वाले स्रोत में सर्वाधिक महत्व के एवं प्रमाणित स्रोत अभिलेख हैं, क्योंकि अभिलेख समकालिक होते हैं। अभिलेखों से तत्कालिक राजनीति व धार्मिक स्थिति को विशेष रूप से प्रभाव पड़ता है।

इसके साथ-साथ राज्य की सीमाओं का निर्धारण राजाओं के चरित्र एवं व्यक्तित्व के विषय में भी यह जानकारी उपलब्ध कराते हैं।

(2) स्मारक

प्राचीन भवनों मूर्तियों एवं भग्नावशेषो का भी प्राचीन इतिहास में विशेष महत्व है। स्मारकों से राजनीतिक स्थिति पर तो प्रकाश नहीं पड़ता लेकिन इनसे सांस्कृतिक क्षेत्र में अत्याधिक जानकारी प्राप्त होती है।

जैसे मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा में उत्खनन उसे संभवत विश्व की प्राचीनतम सभ्यता सिंधु सभ्यता का पता चलता है।

(3) मुद्राएं

प्राचीन भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालने वाले पुरातात्विक स्रोतों में मुद्राओं का विशेष स्थान है, क्योंकि मुद्राओं से आर्थिक स्थिति के बारे में पता चलता है। राजाओं की तिथि क्रम का निर्धारण होता था। मुद्राओं पर उत्कीर्ण विभिन्न देवी-देवताओं के चित्र से तत्कालीन धर्म के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। मुद्राओं से हमें कला पर कला के बारे में जानकारी मिलती है।

मुद्राओं के प्राप्ति स्थल के आधार पर इतिहासकारों ने साम्राज्य की सीमा का निर्धारण करने में सहायता मिलती है। विदेशियों से संबंध होने के बारे में भी मुद्राओं से ही पता चलता है।

(4) कलाकृतियां एवं मिट्टी के बर्तन

विभिन्न स्थानों पर किए गए उत्खनन उसे मिट्टी की बनी हुई अनेक मूर्तियां और बर्तन प्राप्त होते हैं। इन बर्तनों व मूर्तियों का भी अत्याधिक ऐतिहासिक महत्व क्योंकि इनसे तत्कालिक लोक कला धर्म है और सामाजिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है।

निष्कर्ष

उपरोक्त किए गए वर्णन से स्पष्ट है कि प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के लिए हमारे पास वोटों का भाव तो नहीं है। विभिन्न साहित्यिक एवं पुरातात्विक स्रोतों से भारतीय इतिहास पर व्यापक रूप से प्रकाश बढ़ता है।
अतः आवश्यकता इस बात की है कि अपनी बुद्धि का प्रयोग करके इतिहासकार उपलब्ध व्यापक सामग्री में अतिरंजित एवं शब्द जाल युक्त विवरण को त्यागकर, वास्तविक तथ्यों को ढूंढकर उनके आधार पर इतिहास का स्रजन करें।

Frequently Asked Questions(FAQ)

भारतीय इतिहास का पिता किसे कहा जाता है?

मेगास्थनीज ने "इन्डिका" नाम की पुस्तक लिखी थी, इन्हें ही भारतीय इतिहास का जनक कहा जाता है।

भारतीय इतिहास का कौन सा काल स्वर्ण काल के नाम से जाना जाता है?

भारतीय इतिहास के गुप्त काल को स्वर्ण काल के नाम से जाना जाता है, इस काल में विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त द्रितीय और समुन्द्र्गुप्त जैसे राजा हुए।
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