Paramecium : Sexual Reproduction and Asexual Reproduction Describe In Hindi

What is Paramecium ? Paramecium यूकेरियोटिक, एककोशिकीय Ciliates यूकैरियोटिक की एक प्रजाति है। Paramecia मीठे पानी, खारे और समुद्री वातावरण में घाटियों और तालाबों में बहुत प्रचुर मात्रा में होते हैं। आसान शब्दो मे - Paramecium पानी में पाया जाने वाला एक सूक्ष्म एकल कोशिका जीव है। जिसका आकर चप्पल जैसा होता है।

Reproduction in Paramecium ( पैरामीशियम में प्रजनन )

पैरामीशियम (Paramecium) अनुपस्थ द्वि-खण्डन द्वारा अलैंगिक जनन करता है। इसके अलावा इसमें अनेक प्रकार से Nuclear पुनर्गठन, जैसे संयुग्मन ( conjugation ) अतः मिश्रण, आटोगैमी तथा साइटोगैमी आदि भी होते है ।

Transverse Bi-sectional Transverse (अनुप्रस्थ द्वि-खण्डनरू अनुप्रस्थ )

अनुकूल दशाओं में पैरामीशियम सामान्यतः अनुप्रस्थ या क्षैतिज द्वि खण्डन (binary fission) द्वारा जनन करता है, जो इसके शरीर की अनुदैर्ध्य अक्ष के साथ समकोण (90°) बनाता हुआ होता है। इसमे पैरामीशियम (Paramecium) भोजन लेना बन्द कर देता है और इसकी मुख खाँच तथा मुख गुहीय संरचनाएँ अदृश्य होने लगती है।

इसी बीच इसके लघुकेन्द्रक में सूत्री विभाजन ( Point division ) की जटिल प्रक्रिया द्वारा विभाजन आरम्भ हो जाता है और केन्द्रक कला विलुप्त नहीं होती है। पहले इसके परिमाण में कुछ वृद्धि होती है, फिर इसक गुणसूत्र, जिनकी संख्या प्रजाति के अनुसार 36 से 150 तक होती है, प्रकट होने लगते हैं।

Prophase Stage (प्रोफेज अवस्था)

प्रत्येक गुणसूत्र लम्बाई में बीच से चिर कर दो अर्ध-गुणसूत्र बनाता है। यह प्रोफेज अवस्था है।

Matphase Stage (मैटाफेज अवस्था)

जब युग्मित अर्ध-गुणसूत्र केन्द्रकी तर्क में विषुवत् रेखीय तल पर व्यवस्थित हो जाते हैं। यह मैटाफेज अवस्था है।

Anaphase Stage (एनाफेज अवस्था)

इसके पश्चात् अर्ध-गुणसूत्रों का पृथक्कीकरण होता है और लघु केन्द्रक की लम्बाई में वृद्धि होती है। यह एनाफेज अवस्था है।

Telophase Stage (टीलोफेज अवस्था)

अन्त में, लघुकेन्द्रक अत्यधिक लम्बी हो जाती है और इसके दोनों सिरे दो लघुकेन्द्रकों में संगठित हो जाते हैं तथा दोनों सन्तति लघुकेन्द्रक एक दूसरी से पृथक हो जाती हैं। साथ ही साथ गुरुकेन्द्रक लम्बाई में बढ़कर और मध्य से संकीर्णित होकर असूत्री विभाजन द्वारा विभाजित हो जाती है।

अब दो मुख खाँच बनने लगती हैं। जिनमें से एक अगले भाग में और दूसरी पिछले भाग में होती है। दोनों संकुंचनशील रिक्तिकाओं में से एक अग्र अर्द्ध भाग में तथा दूसरी पश्च अर्द्ध भाग में ज्यों की त्यों बनी रहती हैं। इस प्रकार विभाजित हो रहे जनक प्राणी के प्रत्येक अर्ध भाग में एक-एक संकुंचनशील रिक्तिका पहुँच जाती है। बाद में दोनों भागों में एक-एक नई संकुचनशील रिक्तिका बन जाती है। दो नई मुख संरचनाएँ भी प्रगट होती हैं।

इसी बीच शरीर के मध्य के निकट एक संकीर्ण खाँच बननी आरम्भ हो जाती है। यह खाँच धीरे-धीरे गहरी होती जाती है और अन्त में कोशिकाद्रव्य पूर्णतः विभाजित हो जाता है, जिसके फलस्वरुप दो सन्तति पैरामीशियम (Paramecium) बन जाते हैं। इनमें से जो जनक प्राणी के अग्र भाग से बनता है उसे प्रोटर और पश्च भाग से बनने वाले को ऑपिस्थे कहते हैं। ये दोनों वृद्धि करके पूर्ण आकार प्राप्त कर लेते हैं और फिर द्वि-खण्डन द्वारा विभाजित होते हैं।

पै० कोडेटम द्वि-खण्डन द्वारा एक दिन में 2 या 3 बार विभाजित होता है। यद्यपि एक बार की प्रक्रिया में 30 मिनट का समय लगता है तथापि सन्तति पैरामीशियम (Paramecium) को पृथक होने में लगभग एक घंटा या इससे अधिक समय लग जाता है। वे सब प्राणी, जो एक ही जनक पैरामीशियम के अलैंगिक विभाजन से उत्पन्न होते हैं, संयुक्त रुप से एक क्लोन बनाते हैं। एक क्लोन के समस्त सदस्य आनुवंशिक रूप से समान होते हैं।

Conjugation Process (संयुग्मन प्रक्रिया)

पैरामीशियम में लैंगिक प्रजनन ( Sexual Reproduction In Paramecium ) संयुग्मन ( Conjugation ) के द्वारा होता है। संयुग्मन क्रिया में एक ही जाति के दो जन्तुओं में लघु या माइक्रोनाभिकों के आदान-प्रदान के हेतु अस्थायी संयोग होता है।

(a) Factors Induce Conjugations (संयुग्मन क्रिया के उत्प्रेरक)

संयुग्मन क्रिया एवं पोषण सम्बन्धी प्रतिकूल परिस्थितियों में होता है। भूख, खाद्य की उपलब्धता में कमी, विशिष्ट प्रकार के जीवाणुओं का खाद्य, प्रकाश, तापमान एवं विशिष्ट रसायन (जैसे- फेरिक एवं अमोनियम के क्लोरायड्स) संयुग्मन उत्प्रेरित करते हैं।

(b) Mating Type (मेटिंग टाइप)

पै. कौडेटम में अनेकों किस्में होती हैं जिन्हें सिनजेन (syngens) कहते हैं । प्रत्येक किस्म में दो या अधिक मेटिंग टाइप होती हैं। इन मेटिंग टाइप्स के बाह्य स्तर के रासायनिक गुणों (प्रोटीन) में अन्तर होता है। संयुग्मन एक किस्म की दो भिन्न मेटिंग टाइप्स के मध्य ही होता है।

मैटिंग प्रकार में आकारिकीय समान है, लेकिन शारीरिकीय भिन्न बने हुए होते है। P. Caudatum में 16 syngens और 32 मैटिंग प्रकार के होते है।

(c) Process of Conjugation (संयुग्मन विधि)

एक ही किस्म के विभिन्न मेटिंग टाइप वाले दो पैरामीशियम (Paramecium) जब जल में तैरते समय एक दूसरे के सम्पर्क में आते हैं तो वे एक-दूसरे से मुख क्षेत्र के द्वारा चिपक जाते हैं। इसके पश्चात् इनके रोमक, ट्राइकोसिस्ट एवं पोषण अंग समाप्त हो जाते हैं। सम्पर्क स्थान में पेलिकिल एवं एक्टोप्लाज्म के अपकर्ष के कारण दोनों जन्तुओं के मध्य एक संयुग्मन सेतु ( Conjugation Bridge ) बन जाता है।

इन दोनों जन्तुओं को अब संयुग्मक ( Conjugants ) कहते हैं। संयुग्मन क्रिया कई घण्टे तक चलती है। इस समय में संयुग्मकों में नाभिकों का पुनर्गठन एवं आदान-प्रदान निम्न प्रकार से होता है।

(i) Marconuclear Change (दीर्घ या मैक्रोनाभिक में परिवर्तन )

यह टुकड़ों में विभक्त हो जाता है और संयुग्मन के समय कोशिकाद्रव्य द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है।

(ii) Micronuclear Change ( लघु या माइक्रोनाभिक में परिवर्तन )

  1. प्रत्येक संयुग्मक में द्विसूत्री नाभिक के आकार में वृद्धि होती है और यह अर्धसूत्री विभाजन के द्वारा चार एकसूत्री माइक्रोनाभिकों में विभक्त हो जाता है।
  2. चार में से तीन माइक्रोनाभिकों का अपकर्ष हो जाता है और केवल एक कार्य करता है।
  3. शेष एक माइक्रोनाभिक समसूत्री विभाजन के द्वारा दो नाभिकों में विभक्त हो जाता है। इन नाभिकों को गैमीट नाभिक कहते हैं। इनमें से एक निष्क्रिय रहता है और इसे स्थिर या मादा माइक्रोनाभिक कहते हैं। दूसरे नाभिक को घुमक्कड़ (wandering) या नर माइक्रोनिक कहते हैं।
  4. संयुग्मकों के मध्य पर नाभिकों का आदान-प्रदान होता है। प्रत्येक का नर नाभिक संयुग्मन सेतु के मार्ग से दूसरे संयुग्मक में प्रविष्ट हो जाता है।
  5. प्रत्येक संयुग्मक में नर और मादा नाभिकों का समेकन होता है जिसके परिणामस्वरूप द्विसूत्री जाइगोट नाभिक ( Zygote Nuclear ) या सिनकैरिओन ( Synkaryon ) उत्पन्न होता है। नाभिकों के पूर्ण समेकन को एम्फीमिक्सिस (Amphimixis ) कहते हैं।
  6. दोनों संयुग्मक अब पृथक हो जाते हैं। इन्हें अब पूर्व संयुग्मक ( Exconjugants ) कहते हैं।
  7. प्रत्येक पूर्व सयुग्मक में जाइगोट नाभिक का तीन बार समसूत्री विभाजन होता है जिससे 8 नाभिक बन जाते हैं।
  8. आठ में से चार नाभिकों में वृद्धि होती है और यह दीर्घ या मैक्रोनाभिक बन जाते हैं। बची हुई चार लघु केन्द्रिका कहलाती है।
  9. शेष चार नाभिकों में से तीन नष्ट हो जाते हैं।
  10. शेष एक माइक्रोनाभिक का विभाजन होता है और इसके साथ ही पूर्व संयुग्मक का शरीर भी दो में विभक्त
  11. हो जाता है। अतः प्रत्येक संयुग्मक से दो संतति पैरामिशियम उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार उत्पन्न प्रत्येक संतति पैरामीशियम (Paramecium) में दो मैक्रो एवं माइक्रोनाभिक होता है।
  12. प्रत्येक संतति में माइक्रोनाभिक का विभाजन होता
  13. है। इसके साथ शरीर का भी पुनः विभाजन होता है।
  14. प्रत्येक संतति में अब एक मैक्रो एवं एक माइक्रोनाभिक होता है।
  15. इस प्रकार संयुग्मन क्रिया के अन्त में प्रत्येक जनक से चार संतति पैरामीशियम (Paramecium) उत्पन्न होते हैं।

(2.) Factors Inducing in Conjugation  [संयुग्मन के कारक एवं परिस्थितयाँ]

कार्यिकी रुप से संयुग्मन अति जटिल क्रिया है। यह पैरामीशियम (Paramecium) की विभिन्न जातियों के लिये भी भिन्न हो सकती हैं।

  1. जीवन की अनुकूल परिस्थितियों में संयुग्मन नहीं होता। भोजन की कमी या एक विशेष प्रकार के भोज्य जीवाणु की कमी या कुछ विशिष्ट रासायनिक पदार्थों के होने पर कुछ जातियों में संयुग्मन का होना पाया गया है।
  2. पै0 कौडेटम में संयुग्मन प्रायः प्रातः काल के प्रथम चरण में प्रारम्भ होकर दोपहर बाद तक होता है।
  3. ऐसा बताया जाता है कि प्रकाश एवं तापमान का एक निश्चित परास जो भिन्न-भिन्न जातियों के लिए भिन्न हो सकता है, संयुग्मन के लिए आवश्यक होता है।
  4. संयुग्मन के लिए पोषण की एक निश्चित स्थिति का होना अनिवार्य है, क्योंकि भूखे या आवश्यकता से अधिक भोजन खाए होने पर प्राणी सामान्यतः संयुग्मन नहीं करेंगे।
  5. संयुग्मी प्राणियों का परिमाण (2010u) सामान्य प्राणियों के परिमाण 300 से 350u की अपेक्षा सामान्यतः छोटा होता है।
  6. परस्पर जुड़ते हुए संयुग्मक आइसोगैमस होते हैं और उनमें आकारिक रूप से नर और मादा का लैंगिक भेद नहीं होता है।
  7. प्राणी लैंगिक परिपक्वता प्राप्त करने से पूर्व काफी बार अलैंगिक पीढ़ियों से गुजरते हैं, जिसे अपरिपक्वता की अवधि कहा जाता है, उसके पश्चात वे संयुग्मन करते हैं।
  8. एक शुद्ध वंशक्रम अर्थात् एक ही प्राणी के उत्तराधिकारियों के बीच संयुग्मन कभी नहीं होता। यह केवल दो भिन्न संगम प्रकारों के प्राणियों के बीच होता है। इस प्रकार पैरामीशियम (Paramecium) में एक प्रकार की कार्यिकी लैंगिक भिन्नता मिलती है।
  9. ऐग्लुटिनेशन की प्रक्रिया संयुग्मन के पक्ष में होती है। यह संगम प्रकार के पदार्थों अर्थात् प्रोटीनों की पारस्परिक क्रिया होती है, जो पक्ष्माभों में स्थित होती है।

3. Significance of Conjugations [संयुग्मन का महत्व]

संयुग्मन का महत्व ( Significance of Conjugation ) निम्न प्रकार है।

(i) Nuclear Reorganization in Paramecium [नाभिकीय पुनर्गठन]

निरन्तर द्विखण्डन होते रहने के कारण मैक्रोनाभिक में जीनी सन्तुलन बिगड़ जाता है क्योंकि मैक्रोनाभिक में असमसूत्री विभाजन होता है और संतति मैक्रोनामिकों को आनुवंशिक पदार्थ बराबर एवं सन्तुलित मात्रा में नहीं मिल है। इस असंतुलित मैक्रोनाभिक का पुनर्गठन आवश्यक हो जाता है। संयुग्मन क्रिया में पुराना मैक्रोनामिक नष्ट हो ता है और नवीन उत्पन्न होता है। असन्तुलित नामिक शरीर की उपापचय क्रियाओं का उचित नियमन नहीं कर सकता।

2. Rejuvenations [नवीनीकरण:]

निरन्तर अलैंगिक प्रजनन के परिणामस्वरूप पैरामीशियम (Paramecium) की शक्ति क्षीण होने लगती है। और इसकी द्विखण्डन के द्वारा विभाजित होने की दर भी घटने लगती हैं। जन्तु की उपापचय क्रियायें भी असन्तुलित होने लगती हैं। संयुग्मन क्रिया के द्वारा इसका कायाकल्प हो जाता है और इसको खोई हुई शक्ति पुनः प्राप्त हो जाती है। सम्भवतः मैक्रोनाभिक का पुनर्गठन ही कायाकल्प करता है।

3. Hereditary Variation [पैतृक विविधता]

द्वि-खण्डन द्वारा होने वाले अलैंगिक जनन में जनक प्राणी की पैतृक सामग्री बिना किसी परिवर्तन के एक से दूसरी सन्तति में पहुँचती रहती है, जिसके फलस्वरूप एक पैरामीशियम (Paramecium) से प्राप्त समस्त सन्तानें एक जैसी ही वंशागति की बनती रहती है। अतः कभी-कभी संयुग्मन के होते रहने से वंशागत विविधता निश्चित हो जाती है। संयुग्मन होने से दो कमी की पूर्वज नरम्परा का मिश्रण ठीक द्विलिंग जनन की भाँति होता रहता है।

4. Genetic Consequences of Conjugation in Paramecium [पैरामिशियम में संयुग्मन के आनुवंशिक परिणाम ]

 पैरामीशियम (Paramecium)  में संयुग्मन ( Conjugation ) करने वाले दोनों संयुग्मकों में से यदि एक संयुग्मक प्रभावी जीन (AA) का समयुग्मजी होता है और दूसरा अप्रभावी जीन (aa) का समयुग्मजी होता है तो ऐसी परिस्थिति में उत्पन्न होने वाली पहली पीढ़ी विषमयुग्मजी (Aa) होती है। यदि दोनों संयुग्मक पहले से ही विषमयुग्मजी (Aa) होते हैं तो परिणामी सन्तान समयुग्मजी अथवा विषमयुग्मजी कोई भी हो सकती है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि संयुग्मक में कौन-से जीन 3 लघुकेन्द्रकों के नष्ट होने में लुप्त हो जाते हैं। क्योंकि युग्मक केन्द्रकों के निर्माण में अर्धसूत्री विभाजन के अन्तर्गत प्रत्येक संयुग्मक के A अथवा में से किसी का भी विलोपन सम्भव है।

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