अंग्रेजी में Education और हिन्दी 'शिक्षा' शब्द एक ही अर्थ के सूचक हैं। शिक्षा एक जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है।
शिक्षा क्या है What is education
राबर्ट उलिच के अनुसार "शिक्षा मानव के पारस्परिक एवं वाह्या वस्तु जगत के साथ निरन्तर अन्तःक्रिया का परिणाम है।"
यह अन्तः क्रिया आदिकाल से मानव के धरती पर अवतरण के साथ आरम्भ हुई और उतना ही प्राचीन है। शिक्षा की प्रक्रिया का इतिहास इस अन्तः क्रिया को समझने, जानने और परिभाषित करने का कार्य भी निरन्तर किया जाता रहा है।
Plato ने शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा है, “शिक्षा से मेरा अभिप्राय उस प्रशिक्षण से है जो अच्छी आदतों के द्वारा बालकों में अच्छी नैतिकता का विकास करती है।"
अरस्तू "शिक्षा स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण करती है।"
उपलब्ध ज्ञान के आधार पर शिक्षा के अर्थ को निम्नलिखित आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है।- शिक्षा का शाब्दिक अर्थ
- शिक्षा का संकुचित तथा व्यापक अर्थ
- शिक्षा का विश्लेषणात्मक अर्थ
- शिक्षा का वास्तविक अर्थ
(1) शिक्षा का शाब्दिक अर्थ (Etymological Meaning of Education)
अंग्रेजी का Education शब्द लैटिन भाषा के तीन शब्दों (i) Educatum (ii) Educare (iii) Educere से बना है Educatum का अर्थ शिक्षण या प्रशिक्षण कार्य (Act fo Teaching or Trainin), दूसरे का अर्थ है शिक्षित करना और तीसरे का अर्थ है पथ प्रदर्शन (To Guide)।
इस प्रकार शिक्षा (Education) का अर्थ हुआ Act of teaching or training to bring up and to lead or to bring forth अर्थात् प्रशिक्षण, संवर्धन या पथ प्रदर्शन।
'Education' शब्द को व्युत्पत्ति के आधार पर 'E' और 'Duco' में भी विश्लेषित किया जा सकता है। E का अर्थ है 'अन्दर' और Duco का अर्थ है अग्रसर करना। अर्थात् अन्दर से बाहर की ओर प्रकाशित या अप्रसारित करना।
हिन्दी का 'शिक्षा' शब्द भी संस्कृत की 'सिख' धातु से बना है। इसका अर्थ है प्रकाशित करना।
शिक्षा विद्या का पर्याय है। 'विद्या' का अर्थ है 'जानना' संस्कृत में 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' का वाक्य शिक्षा के अन्तः निहित अविकसित शक्ति के बाह्य प्रकाशन या आलोक की ओर ले जाने वाली प्रक्रिया के अर्थ को ही स्पष्ट करती है।
अतः अंग्रेजी में Education और हिन्दी 'शिक्षा' शब्द एक ही अर्थ के द्योतक हैं।(2) शिक्षा का संकुचित एवं व्यापक अर्थ (Narrower and Wider Meaning of Education)
शिक्षा का संकुचित अर्थ (Narrower Meaning of Education)
संकुचित अर्थ में 'शिक्षा' निर्देश, पुस्तकीय ज्ञान, विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा आदि सन्दर्भों में प्रयुक्त होती है।
जे. एस. मिल, मेकेन्जी, रेमाण्ट आदि विद्वानों ने शिक्षा के संकुचित अर्थ में विभिन्न दृष्टिकोणों से प्रस्तुत किया है।
जे. एस. मिल ने संकुचित अर्थ में शिक्षा को सांस्कृतिक विरासत के हस्तांतरण की प्रक्रिया माना है।
उसके शब्दों में - शिक्षा एक पीढ़ी के द्वारा उत्तराधिकारियों को दी जाने वाली सांस्कृतिक धरोहर है,जो इस उद्देश्य से हस्तांतरित की जाती है कि वे इससे लाभान्वित होंगे और सम्भवतः प्राप्त स्तर को ऊँचा उठाने हेतु प्रयत्न करेंगे।
रेमाण्ट के शब्दों में, "शिक्षा का संकुचित अर्थ उन विशेष प्रभावों से लिया जाता है जिसे अधिक के लोग जानवूझ कर एवं नियोजित रूप में अपने से छोटे पर प्रभाव डालते हैं। भमले ही ये प्रभाव आयु परिवार, धर्म या राज्य द्वारा डाले जायें ।"
मेकेन्जी के अनुसार "संकुचित अर्थ में शिक्षा का अभिप्राय हमारी शक्तियों की विकास और उन्नरति के लिए चेतनापूर्वक किये गये किसी भी प्रयास से हो सकता है ।"
अतः संकुचित अर्थ में शिक्षा सप्रयोजन किया जाने वाला वह प्रयास है जो किसी विशेष प्रभाव डालने हेतु किया जाता है। सामान्यतः यह विशिष्ट वातावरण में प्रदान की जाती है पर इसे हम पूर्ण शिक्षा नहीं कह सकते।
ऐसी शिक्षा किसी विशिष्ट प्रयोजन से दी जाती है। अतः एकांगिक होती है और बालक में सभी वांछित कुशलताओं, क्षमताओं का विकास नहीं कर पाती।
शिक्षा का व्यापक अर्थ (Wider Meaning of Education)
व्यापक अर्थों में शिक्षा एक जीवनपर्यन्त चलने वाली, विकासोन्मुख, परिवर्तन करने वाली गतिशील प्रक्रिया है। जिसके अन्तर्गत जीवन के सफर में प्राप्त होने वाले समस्त अनुभव एवं प्रभाव सम्मिलित होते हैं।
इस सम्बन्ध में मैकेन्जी का यह कथन उललेखनीय है- "व्यापक अर्थ में शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो आजीवन चलती रहती है और जीवन के प्रायः प्रत्येक अनुभव से उसके भंडार में वृद्धि होती है "
प्रो. डमविल ने भी शिक्षा के व्यापक अर्थ को समझते हुए इस प्रकार परिभाषित किय; है । "शिक्षा के व्यापक अर्थ में वे सभी प्रभाव आते हैं जो व्यक्ति को जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रभावित करते हैं "
अतः व्यापक अर्थ में शिक्षा सम्पूर्ण जीवन से जुड़ी हुई है। यह वह विकास का क्रम है जो मानव को निरन्तर उसके विभिन्न वातावरण से सामंजस्य स्थापित करने के योग्य बनाती है।
"व्यापक अर्थ में हर अनुभव शिक्षा कहा जा सकता है।"
(3) शिक्षा का विश्लेषणात्मक अर्थ (Analítical Meaning of Education)
शिक्षा एक जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। यह सिद्ध हो चुका है, पर यह किसके मध्य चलती है, इसके प्रमुख तत्व क्या हैं, आधुनिक सन्दर्भों में शिक्षा के अर्थ में क्या परिवर्तन हुए यह निम्न आधार पर जानने का प्रयास किया जा सकता है।
(1) शिक्षा मानव का सामन्जस्य विकास है। डीवी के अनुसार शिक्षा व्यक्ति की उन सब शक्तियों का विकास है जिनसे वह वातावरण पर अधिकार प्राप्त कर सके और अपनी भावी आशाओं को पूरा कर सके।
(2) शिक्षा केवल स्कूल में मिलने वाली शिक्षा तक ही सीमित नहीं है। शिक्षा जीवनपर्यन्त चलती रहती है। मानव छोटे से छोटे जीव-जन्तु तथा प्रकृति के किसी भी रूप से कुछ न कुछ सीखता रहता है। अतः शिक्षा को विद्यालयी शिक्षा तक सीमित करना उचित नहीं।
(3) शिक्षा अभिवृद्धि है। अभिवृद्धि का अर्थ है शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों का विकास। शिक्षा के माध्यम से यह विस्तार वांछित दिशा में होता है। परिवर्तन की सभी क्रियायें (शैशव अवस्था के जरायु तक) शिक्षा की क्रियायें मानी जाती हैं।
शिक्षा एक द्विमुखी प्रक्रिया है
John Adams ने शिक्षा को शिक्षक एवं शिक्षार्थी के मध्य चलने वाली द्विमुखी प्रक्रिया माना है। 'Education is a bipolar process', इनमें से एक की भी अनुपस्थिति में शिक्षा की प्रक्रिया नहीं चल सकती। दोनों ही एक दूसरे से प्रभावित होते हैं और शिक्षा के सफल संचालन में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सक्रिय भाग लेते हैं।एक सीखता है और दूसरा सिखाता है।अतः शिक्षा, शिक्षक एवं विद्यार्थी दो ध्रुवों के मध्य संचालित होती है।
शिक्षा त्रिमुखी प्रक्रिया है
परन्तु प्रयोजनवादी विचारकों ने इसे त्रिमुखी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया है। 'Education is a tripolar process', तीसरा ध्रुव या तत्व उसने समाज को बताया है। शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है जो समाज की आवश्यकता को पाठ्यक्रम के रूप में स्वीकार कर शिक्षक और शिक्षार्थी के साथ विषय वस्तु को आवश्यक तत्व के रूप में ग्रहण करती है।
शिक्षा एक सामाजिक विकास की प्रक्रिया है
जैसा कि ऊपर कहा गया है कि शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है। डीवी ने 'Education is a social function' कहकर सामाजिक वातावरण में चलने वाली शैक्षिक प्रक्रिया को मानव क्रियाओं के महत्व को समझाया है।
उसके अनुसार सामाजिक वातावरण में व्यक्ति की वे सभी क्रियायें आती हैं जो वह इसके सदस्य के रूप में करता है और जिनके अनुरूप हो वह शिक्षा प्राप्त करता है।
शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है
एडम्स के अनुसार 'Eduaction is a dynamic process', जो समाज पर प्रभाव डालती है और स्वयं समाज से प्रभावित होती है। जो सामाजिक परिवर्तन का कारण बनती है और समाज की आवश्यकताओं के अनुसार स्वयं अपने रूप को परिवर्तित करती है।
यही कारण है कि शिक्षा आदिकाल से आध्यात्मिक विकास के साधन के रूप में सफर तय करती हुई आज व्यावहारिक जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने के साधन के रूप में प्रतिष्ठित हो सकी है।
(4) शिक्षा का वास्तविक अर्थ(Real Meaning of Education)
शिक्षा की अभी तक ऐसी परिभाषा नहीं दी जा सकी है जिससे शिक्षा के सही अर्थ को समझा जा सके। अतः शिक्षा के विभिन्न अर्थों का समन्वय करके शिक्षा के सही अर्थ को समझा जा सकता है।
आधुनिक शिक्षाशास्त्री शिक्षा के संकुचित एवं व्यापक अर्थ के मध्य वास्तविक अर्थ को ढूंढने का प्रयास करते हैं। हम शिक्षा की सही अवधारणा को इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं।
“शिक्षा मानव की जन्मजात शक्तियों का सामंजस्यपूर्ण एवं स्वाभाविक विकास करने वाली प्रक्रिया है। जो उसके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करके उसे वातावरण से सफल सामंजस्य स्थापित करने की योग्यता प्रदान करती है। उसे मान और नागरिकता और कर्तव्यों के लिए तैयार करती है और उसके व्यवहार, विचार और दृष्टिकोण में ऐसा परिवर्तन करती है जो समाज, देश और विश्व के लिए हितकारी हो ।”
शिक्षा की परिभाषा (Definition of Education)
शिक्षा का इतिहास वास्तव में मानव जीवन एवं सामाजिक पर्यावरण के अन्तः क्रियाओं का इतिहास है जो देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार अपने स्वरूप और अर्थ को भी बदलता रहा है।
शिक्षा को प्रतिपादित करने का कार्य चिन्तकों, विचारकों एवं शिक्षाशास्त्रियों ने अपने जीवन दर्शन एवं सामाजिक दर्शन के आधार पर किया है।
1. शिक्षा जन्मजात शक्तियों के प्रकटीकरण के रूप में ("Education as the process of drawing out innate powers.)"
सुकरात के शब्दों में "शिक्षा का अर्थ है प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में अदृश्य रूप में विद्यमान संसार के सर्वमान्य विचारों को प्रकाश में लाना।"
एडीसन के शब्दों में "जब शिक्षा मानव मस्तिष्क को प्रभावित करती है तो उसके प्रत्येक गुण -एवं पूर्णता को लाकर बाहर व्यक्त करती है । "
फ्रोवेल के शब्दों में “शिक्षा बालक के अन्तराल से वाह्य प्रकाशन की प्रक्रिया है ।"
गाँधी जी के अनुसार "शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक तथा मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा में अन्तनिर्मित शक्तियों के सर्वोत्तम प्रकटीकरण से है।"
2. शिक्षा विकासोन्मुख प्रक्रिया के रूप में
इस मत के अनुयायियों ने शिक्षा को वैयक्तिकता के पूर्ण विकास के रूप में पहचाना।
टी. पी. नन के शब्दों में, "शिक्षा वैक्तिकता का पूर्ण विकास है जिससे कि व्यक्ति अपनी पूर्ण योग्यता के अनुसार मानव जीवन को योगदान दे सके।"कान्ट "शिक्षा व्यक्ति की उस पूर्णता का विकास है जिसे प्राप्त करने की उसमें क्षमता हो।"
(3) शिक्षा वातावरण से सामंजस्य करने के अर्थ में
वार्सिंग – “शिक्षा का कार्य मानव का पर्यावरण से उस सीमा तक सामंजस्य करना है कि व्यक्ति और समाज दोनों को स्थायी सन्तोष मिल सके।"
हॉर्न - “शिक्षा शारीरिक और मानसिक रूप से विकसित सचेतन मानव का अपने मानसिक, उद्वेगात्मक और काल्पनिक वातावरण से श्रेष्ठ सामंजस्य स्थापित करती है।"
बटलर शिक्षा प्रजाति की आध्यात्मिक सम्पत्ति के साथ व्यक्ति का क्रमिक सामन्जन है।"
(4) शिक्षा समूह में परिवर्तन करने के रूप में
"शिक्षा चैतन्य रूप में नियन्त्रित प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन किये जाते हैं और व्यक्ति के द्वारा समूह में।"
आलोचना
डॉ. राधाकृष्णन के शब्दों में "अब यह बात स्वीकार की जाने लगी है कि शिक्षा के प्रति सन्तुलित दृष्टिकोण का विकास किया जाना चाहिए। मानसिक प्रशिक्षण के साथ-साथ कल्पना शक्ति और मनोभावों को निर्मल बनाया जाना चाहिए।
यदि हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके निर्धनता दूर करना चाहते हैं तो ललित कलाओं द्वारा मस्तिष्क की हीनता को दूर किया जाना चाहिए। केवल भौतिक दरिद्रता ही दुख का कारण नहीं है, हमें समाज के हितों को ही शक्तिशाली नहीं वरन् मानव हितों को भी संतुष्ट करना चाहिए।
सौन्दर्यात्मक और आध्यात्मिक उसकर्ष पूर्ण मानव के विकास में योग देते हैं। मानव के निर्माणकारी पहलू का विकास कला के द्वारा होता है। सारांश में मनुष्य और समाज का निर्माण करना चाहिए। अन्ततः शिक्षा मानव निर्मात्री एवं समाज निर्मात्री होनी चाहिए।"
बालक की स्वाभाविक शक्तियों तथा योग्यताओं के आन्तरिक विकास को शिक्षा कहते हैं।"
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