बाल-अपराध के कारण । Causes of Juvenile Delinquency

बाल-अपराध के कारण  (Causes of Juvenile Delinquency)

बाल-अपराध Juvenile Delinquency के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

(1) व्यक्तिगत कारण (Personal Causes)

बाल-अपराध Juvenile Delinquency के लिए निम्नलिखित व्यक्तिगत कारण उत्तरदायी हैं-

(1) शारीरिक असमानताएँ (Physical Abnormalities)

बाल-अपराधियों में प्रायः शारीरिक असमानताएँ पायी जाती हैं। शारीरिक अकर्मण्यता एवं आलस्य उन्हें पढ़ाई-लिखाई एवं स्वस्थ प्रतिस्पद्धां से दूर ले जाता है, परन्तु अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में असफल रहने की स्थिति में वे विचलनकारी कृत्यों में संलिप्त हो जाते हैं। इस बीच उन्हें आवारा बच्चों का सम्पर्क मिल जाता है और वह बाल-अपराधी बन जाते हैं।

(2) शारीरिक दोष (Physical Defects)

अनेक विद्वानों का यह विचार है कि शारीरिक हीनता एवं विकृति से बच्चे को समाज में असफलता मिलती है और इस असफलता की प्रति पूर्ति अपराध द्वारा की जाने लगती है। ऐसे बच्चों के अन्दर प्रायः हीनता की भावना जाग्रत हो जाती है। फलस्वरूप इनके अन्दर प्रतिशोध की भावना बढ़ती चली जाती है और यह भावना अपराध का रूप धारण कर लेती है।

(3) बीमारी (Sickness)

लम्बी बीमारी भी बाल-अपराध का कारण मानी गई है। रोगी बच्चे क्रोधी एवं चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं। बीमारी की स्थिति बच्चे को बाल-अपराधी बनाने में उत्प्रेरक का कार्य करती है।

(4) अपूर्ण आवश्यकताएँ (Unfulfilled Needs)

कई बच्चों की मौलिक आवश्यकताएँ तथा आकांक्षाएँ पूरी नहीं होतीं जिससे बच्चों में असन्तुलन की स्थिति पैदा हो जाती है तथा उनमें भावनात्मक अस्थिरता आ जाती है। बच्चे समाज विरोधी अथवा अनैतिक कार्यों से अपनी अपूर्ण इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करते हैं जिससे कि वे बाल-अपराधी बन जाते हैं।

(5) मानसिक कारक (Psychological Factors)

मानसिक कारकों में निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं-

(i) मानसिक अयोग्यता

ऐसा माना जाता है कि बाल-अपराधी मानसिक रूप से पिछड़े होते हैं। डॉ० गोडार्ड ने बताया है कि कमजोर मस्तिष्क अपराध के लिए उत्तरदायी है। कुमारी इलियट के अध्ययन में 41-50% लड़कियाँ मानसिक रूप से पिछड़ी हुई थीं। हीली और ब्रूनर ने शिकागो के अध्ययन में 63% बाल-अपराधियों को ही स्वस्थ मस्तिष्क का पाया शेष 37% मानसिक कमजोरी एवं बीमारी आदि से ग्रसित थे। कमजोर बुद्धि के बालक अच्छे-बुरे में भेद नहीं कर पाते और वे कुसंगति के कारण अपराध कर हैं।

(ii) भावना ग्रन्थियाँ

जिन बालकों के मस्तिष्क में भावना ग्रन्थियाँ पड़ जाती हैं, वे अपराधों की ओर शीघ्रता से झुक जाते हैं। हीनता की भावना अपराधों की जनक होती है।

(iii) मानसिक रोग

मानसिक रोगों से ग्रस्त बालकों में भले-बुरे का ज्ञान नहीं होता, वे जाने-अनजाने में अपराध कर बैठते हैं।

(iv) भावात्मक अस्थिरता और मानसिक संघर्ष

मानसिक स्थिरता उच्च अनुकूलन का सूचक है। बर्ट ने अपने अध्ययन में यह पाया कि अपराधियों में भावात्मक अस्थिरता एक महत्त्वपूर्ण कारक है। उन्होंने 48.1 प्रतिशत बाल-अपराधियों को मानसिक रूप से अस्थिर पाया।

(2) पारिवारिक कारण (Familial Causes)

जन्म के बाद सर्वप्रथम बालक परिवार के सम्पर्क में आता है और समाजीकरण की प्रक्रिया भी परिवार से ही प्रारम्भ होती है। अत: परिवार का उस पर प्रभाव बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। जहाँ एक तरफ परिवार बालक में सद्गुणों का विकास कर एक आदर्श नागरिक बनाने में सहयोग देता है, वहीं दूसरी ओर उसे अपराधी बनाने में निम्नलिखित पारिवारिक कारक उत्तरदायी होते हैं-

(1) भग्न परिवार (Broken Families)

परिवार दो प्रकार से भग्न ( टूटे हुए ) हो सकते हैं-

(i) भौतिक रूप से

भौतिक रूप से परिवार के भग्न होने का अर्थ है-परिवार के सदस्य की मृत्यु हो जाना, लम्बे समय तक अस्पताल, जेल, सेना आदि में रहने अथवा तलाक और पृथक्करण के कारण परिवार के सदस्यों का साथ-साथ न रहना।

(ii) मानसिक रूप से

मानसिक रूप से परिवार के टूटने का अर्थ है-सदस्य एक साथ तो रहते हैं, किन्तु उनमें मन-मुटाव, मानसिक संघष एवं तनाव पाया जाता है। उपर्युक्त दोनों ही स्थितियों में बालकों पर परिवार का नियन्त्रण शिथिल हो जाने एवं बालकों को माता-पिता का प्यार एवं स्नेह न मिलने के कारण वे अपराध करने लगते हैं।

(2) अपराधी प्रतिमानों वाले परिवार (Family with the Criminal Patterns)

कई परिवार ऐसे होते हैं जहाँ पर अपराध को प्रोत्साहन दिया जाता है। माता-पिता स्वयं बच्चों को बेईमानी से पैसा लाना सिखाते हैं। ऐसे परिवारों में बच्चे शीघ्र ही बाल-अपराधी बन जाते हैं।

(3) पक्षपातपूर्ण व्यवहार (Partiality in Behavior)

परिवार में पक्षपातपूर्ण व्यवहार बच्चों में निराशा, घृणा, ईर्ष्या एवं बदले की भावना विकसित करता है। यदि किसी परिवार में एक बच्चे को अधिक प्यार एवं विशेष सुविधा दी जाती है और दूसरे बच्चे के साथ पक्षपात किया जाता है, उसे हर समय डाँटा-फटकारा जाता है तो यह बच्चा या तो परिवार के सदस्यों के साथ दुर्व्यवहार करता है अथवा परेशान होकर घर से भाग जाता है। इस प्रकार पक्षपात से बच्चे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और वह अपराध के मार्ग पर चलने लगता है।

(4) माता-पिता का उपेक्षित व्यवहार (Parental Rejection Behaviour)

जो माता-पिता अपने बच्चों के प्रति अधिक ध्यान रखते हैं, उन पर कड़ी निगरानी रखते हैं, उन बच्चों के बिगड़ने की कम सम्भावना होती है। इसके विपरीत अधिकतर वे बच्चे बिगड़ जाते हैं, जिनके बारे में उनके माता-पिता ध्यान नहीं रखते हैं। बच्चे सारे दिन घर से बाहर रहते हैं फलस्वरूप वे गन्दी संगति का शिकार हो जाते हैं।

(5) अतिव्यस्त माता-पिता (Over busy Parents)

आज के औद्योगीकरण के युग में माता-पिता दोनों ही किसी-न-किसी व्यवसाय में संलग्न रहते हैं। अपनी अत्यधिक व्यस्तता के कारण वे बच्चों का उचित ध्यान नहीं रख पाते और बच्चे उनकी अनुपस्थिति में घर से बाहर अनावश्यक घूमते रहते हैं और बुरी संगति के शिकार हो जाते हैं। इसके साथ ही माता-पिता के लम्बे समय तक घर से अलग रहने पर बच्चों पर उनका नियन्त्रण लगभग समाप्त हो जाता है, जिससे वे अपने कार्यों को स्वतन्त्र रूप से करते हैं और धीरे-धीरे अपराध की ओर प्रवृत्त हो जाते हैं।

(6) अनैतिक परिवार (Immoral Family)

अनैतिक परिवार से अभिप्राय ऐसे परिवार से होता है जिसमें परिवार का कोई सदस्य अनैतिक जीवन व्यतीत करता है। बच्चे हरी टहनी की भाँति होत हैं, जिहें किसी भी दिशा में मोड़ा जा सकता है। बच्चे के चरित्र एवं व्यक्तित्व पर माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्यों के आचरण का प्रभाव पड़ता है और वह उन्हीं के अनुसार अनुसरण करने लगता है। माता-पिता का चरित्र अगर दूषित है तो बच्चों का समाजीकरण ठीक तरह से नहीं हो पाता। कुछ माता-पिता बच्चों को समाज के प्रति ज्ञान नहीं करा पाते हैं, वे सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते हैं या बच्चे की माता या पिता का चरित्र खराब है, तो बच्चे भी बिगड़ जाते हैं और अपराधी बन जाते हैं।

(7) परिवार का आर्थिक स्तर (Economic Status of Family)

बाल-अपराध तथा परिवार की आर्थिक स्थिति का घनिष्ठ सम्बन्ध है। सर्वेक्षणों के आधार पर पता चलता है कि बाल-अपराधी अधिकतर उन परिवारों में पाये जाते हैं जिनकी आय बहुत कम होती है। बच्चे की अनेक प्रकार की इच्छाएँ होती हैं। वह समाज में ऐसी वस्तुएँ देखता है जो उसका मन मोह लेती हैं। जब सामान्य रूप से वह उन वस्तुओं को प्राप्त करने में विफल हो जाता है तो अवैधानिक ढंग से उन्हें प्राप्त करने का प्रयास करता है तथा बाल-अपराधी बन जाता है।

(8) अवैध पितृता एवं अवांछनीय सन्तान (Illegitimate Parenthood and Unwanted Children)

अवैध माता-पिता द्वारा उत्पन्न बच्चे को समाज में तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता है। इसी प्रकार परिवार में उत्पन्न अवांछनीय सन्तान की सभी जगह उपेक्षा की जाती है। अत: ऐसे बच्चों में समाज के प्रति विद्रोह एवं प्रतिशोधपूर्ण भावना विकसित हो जाती है जो उसे अपराधी कार्यों में प्रवृत्त करती है।

(9) अत्यधिक प्रेम (Excessive Love)

प्राय: बच्चों पर अत्यधिक प्यार भी बुरा प्रभाव डालता है। बच्चों की उचित एवं अनुचित सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करने पर वे जिद्दी हो जाते हैं और अच्छे-बुरे सभी प्रकार के कार्यों को करना चाहते हैं, जिससे धीरे-धीरे बच्चा अपराध सम्बन्धी कार्य भी करने लगता है।

(10) सामाजिक शिक्षा का (Lack of Social Education)

यदि परिवार बच्चों को सामाजिक व्यवहार के बारे में ज्ञान नहीं कराता है, तो बच्चा समाज में ठीक प्रकार का व्यवहार नहीं कर पाता। वह अपने साथियों से तथा समाज से सामंजस्य स्थापित करने में विफल हो जाता है और अन्त में बाल-अपराधी बन जाता है।

(3) सामुदायिक कारण (Community Causes)

सामुदायिक जीवन का बालक पर विशेष प्रभाव पड़ता है। जिस समुदाय में बालक रहता है, यदि उसका वातावरण अनुपयुक्त है तो वह बालक को अपराधी बना सकता है। बाल-अपराध Juvenile Delinquency के लिए निम्नलिखित सामुदायिक कारण उत्तरदायी हैं-

(1) बुरी संगति (Bad Company)

बुरी संगति बच्चों को दुराचरण की ओर प्रेरित करती है। संगति का प्रभाव बच्चों पर बहुत ही गहरा पड़ता है।

(2) दोषपूर्ण शिक्षा व्यवस्था (Defective Educational System)

बच्चों पर स्कूल के वातावरण और शिक्षा व्यवस्था का भी महत्वपूर्ण प्रभाव है। कुछ स्कूलों की परिस्थिति ऐसी होती है कि वहाँ प्रकाश तथा वायु का उचित प्रबन्ध नहीं होता, स्कूल के कमरे गन्दे अथवा छोटे होते हैं जिस कारण वहाँ पर बच्चे अधिक देर नहीं रुक पाते। कक्षाओं में बैठने की रुचि नहीं होती तथा वे स्कूल से अनुपस्थित रहने लगते हैं। पूरा समय स्कूल से बाहर रहकर सिगरेट पीते हैं, जुआ खेलते हैं, लड़कियों पर व्यंग्य कसते हैं, सिनेमा तथा अन्य अपराध कथाएँ एक-दूसरे को सुनाते हैं। ऐसे लड़के परीक्षा में फेल हो जाते हैं तथा अपनी आयु के लड़कों से पिछड़ जाते हैं जिनके कारण उनमें हीन भावनाएँ विकसित होने लगती हैं और वे बाल-अपराधी बन जाते हैं।

(3) स्वस्थ मनोरंजन की कमी (Lack of Healthy Entertainment)

बच्चों के लिए खेल मनोरंजन का महत्त्वपूर्ण साधन है। यदि मनोरंजन के साधन बच्चों को उपलब्ध नहीं हैं तो वह इस समय का दुरुपयोग करके कुसंगति में पड़ सकता है। खेल-कूद तथा स्वस्थ मनोरंजन के साधनों के अभाव में बाल-अपराध अधिक पनपते हैं।

(4) आपत्तिजनक साहित्य (Objectionable Literature)

आपत्तिजनक साहित्य भी बाल-अपराध का एक कारण माना गया है। कई अखबार वाले अपराध से सम्बन्धित खबरों को बढ़ा-चढ़ाकर छापते हैं। अपराध के लिए दण्ड दिये जाने की आवश्यकता पर जोर न देकर पुलिस व्यवस्था का उपहास उड़ाते हैं। अश्लील तथा यौन इच्छा भड़काने वाले चित्र, चोर, डाकुओं की कथाएँ जो बच्चे सिनेमा और टी० वी० में देखते हैं, बच्चों पर बुरा प्रभाव डालते हैं। इन सबका प्रभाव यह होता है कि बच्चा बाल-अपराधी बन जाता है।

(5) युद्ध (War)

युद्ध करने वाले देशों के बीच भी बाल-अपराध को बढ़ावा मिलता है। युद्ध के द्वारा सामाजिक विघटन बढ़ता है। युद्ध के समय नये-नये उद्योग स्थापित होते हैं। माँ-बाप नौकरियों पर जाने लगते हैं। छोटे-छोटे बच्चों की देखभाल कोई नहीं कर पाता। रात्रि में ब्लैक आउट आदि होता है। अन्धेरा होने पर घर से भागने का अच्छा अवसर प्राप्त हो जाता है। लूटमार भी होने लगती है और बच्चे भी उन आदतों का शिकार बन जाते हैं। संक्षेप में यह भी कहा जा सकता है कि युद्ध बाल-अपराध को हर प्रकार से बढ़ावा देता है।

(6) गन्दी बस्तियाँ (Slums)

औद्योगीकरण और नगरीकरण के फलस्वरूप नगरों में जगह-जगह गन्दी बस्तियों का विस्तार हुआ है। एक ही कमरे में परिवार के सभी सदस्यों के रहने के कारण गोपनीयता का अभाव रहता है। इस कारण माता-पिता तथा अन्य वयस्क सदस्यों के यौन व्यवहार को बच्चे देखते और सीखते हैं। इसके अतिरिक्त सिगरेट और शराब पीना तथा अन्य अनैतिक कार्यों को करना बच्चे प्रारम्भ से ही सीख जाते हैं। इन बस्तियों में पेशेवर अपराधी शरण पाते हैं और बच्चों को अपराध की विधियाँ हस्तान्तरित करते हैं।

(7) अपराधी क्षेत्र (Delinquent Area)

यदि बच्चा अपराधी क्षेत्र में निवास करता है तो बच्चे पर उसका प्रभाव पड़ता है; उदाहरणार्थ-यदि पड़ोस में जुआ होता है और वेश्याओं के अड्डे और शराब की दुकानें होती हैं तो बच्चे की मानसिकता प्रभावित होती है और बच्चा अनुकरण आदि के द्वारा अपराधी प्रवृत्तियों को सीखने लगता है।

(8) राजनीतिक संरक्षण (Political Protection)

शिक्षा में राजनीति के बढ़ते प्रभाव से छात्र भी प्रभावित होते हैं। प्रायः छात्रों पर राजनीतिक दलों का प्रभाव होता है और वे छात्र-शक्ति का दुरुपयोग करते हैं। चुनावों के समय में छात्रों में राजनीतिक दलों को लेकर आपस में फूट भी पड़ जाती है जिसमें हिंसा का खुलकर प्रयोग होता है। अनैतिक रूप से चन्दा एकत्रित करना और उसका दुरुपयोग करना, मद्यपान, डराना-धमकाना आदि वह राजनीतिक दलों के प्रभाव के कारण ही सीखता है। इस प्रकार छात्रों को राजनीतिक दलों का संरक्षण उन्हें अपराध के लिए प्रोत्साहित करता है। संक्षेप में हम यह कह सकते है कि राजनीतिक संरक्षण बाल-अपराध के कारण Causes of Juvenile Delinquency में प्रमुख कारण है।
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