Asterias (Starfish): Diagram, Habitat And Feature In Hindi

Habit and Habitat of Pentaceros or starfish

 पेण्टासिरॉस का प्रचलित नाम "C Pentagon'' है इसे  अब ऑरिऐस्टर (Oreaster) के नाम से जानते हैं। यह सामान्यतया इण्डोपेसिपिक समुद्र तथा वेस्टइंडीज, बंगाल की खाड़ी तथा अरेबियन समुद्रों में पाया जाता है। Pentaceros Oreaster का भक्षण करता है अतः यह मोती उद्योग के लिए अति हानिकारक होता है।


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पेण्टासिरॉस के संरचना External Features:-

पेण्टासिरॉस का शरीर अति मोटा व तारा के समान होता हैं इसका व्यास लगभग 25 सेमी तक होता है। इसके मध्य में एक बड़ी केन्द्रीय डिस्क तथा उस पर पाँच छोटी शंकुकार की भुजायें होती है। भुजाएँ छोटी एवं चौड़े आधार की होती है जिनहें सैटिलैट आर्म्स (Stelleate arms) कहते हैं। ये सेण्ट्रल डिस्क से स्पष्ट रूप से पृथक नहीं होती है। भुजाओं के अक्ष को रेडाई ( rodii) तथा उनके मध्य के भाग को इण्टर रेडाई (Inter radii) कहते हैं इसका शरीर अनेक कैल्के रियल अन्त कंकाल की प्लेट्स या ऑसिकल्स ( ossicles) से ढका होता है।

मुख सतह oral surface:- जिसमें मुख सतह (oral surface) और अपमुख सतह (aboral sufrace) स्पष्ट रूप से अलग-अलग हो जाती है।

1. Mouth:- शरीर की चपटी निचली सतह, जो आधार तक की ओर रहती है। मुख तरह या अधर सतह कहलाती है। इस सतह पर केन्द्रीय बिम्ब के मध्य में एक छिद्र होता है, जिसे अरमुख अथवा मुख (mouth) कहते हैं। यह पंचभुजीय छिद्र होता है, जिसके पाँच कोण पाँचों भुजाओं की ओर होते हैं। मुख के चारों ओर कोमल झिल्ली, परिमुख कला peristomial membrane या पेरिस्टोम peristome होती है। और यक मुख शूल (oral spines) या मुख अंकुरों के पाँच समूहों से सुरक्षित रहता है।

2. Ambulacral grooves:- मुख के प्रत्येक कोण से एक अरीय सँकरी वीधि खाँच आरम्भ होती है जो अपने सामने की भुजी की निचली सतह की मध्यरेखा में भुजा के सिरे तक फैली रहती है।

3. Tube feet or podia: प्रत्येक खाँच दोनों ओर से गतिशील, कल्केरियाई वीथि शूलों की दो या तीन पंक्तियों द्वारा सुरक्षित रहती हैं ये शूल खाँ को ऊपर से बन्द कर लेते हैं। इन शूलों से बाहर की ओर दृढ़ एवं अचल शूलों की एक श्रेणी और होती है, जो मुख एवं अपमुख सतहों को पृथक करती है। प्रत्येक वीधि खाँच में छोटे-छोटे नली आकार आकुंचनशील उभारों की दुहरी दो पंक्तियों होती है, इन उभारों को पादाभ या नाल - पाद कहते हैं।

4. Ambulacral spines:- नाल-पदों के सिरोंपर चूषक होते हैं। नाल-पाद कहते हैं। नाल-पदों के सिरों पर चूषक होते हैं। नाल-पाद एकाइनोडर्म जन्तुओं के विशेष अंग होते हैं, जो प्रचलन करने, भोजन पकड़ने, श्वसन, करने, इत्यादि बहुत सी क्रियाओं में सहायक होते हैं। प्रत्येक भुजा के सिरे पर एक छोटा, मध्यवर्ती, आकंचनशील, एवं खोखला उभार, अन्तस्थ स्पर्शक होता है।

5. Sense organs:- यह स्पर्शक स्पर्श एवं गन्ध की ज्ञानेन्द्रियों की भाँति कार्य करता है। इसके आधार पर एक चमकीले लाल रंग का प्रकाश सम्वेदी नेत्र चिन्ह होता है, जिसमें कई नेत्रक (Ocelli) होते हैं।

अपमुख सतAboral surface:- यह शरीर की ऊपरी ओर कुछ उत्तल पृष्ठ सतह होती है। इस सतह पर असंख्य छोटे-छोटे मुधरे व अचल कल्केरियाई शूल या गुलिकाएँ (tubercles) होती है, जो भुजाओं की लम्बी अक्षों के समानान्तर अनियमित पंक्तियों में व्यवस्थित रहती है।

1. Anus:- केन्द्रीय बिम्ब की अपमुख सतह पर केन्द्र के निकट एक छोटा वृत्ता होता है जो गुदा कहलाता है।

2. Madreporite: किन्ही दो भुजाओं के बीच आन्तरीय स्थान में एक स्पष्ट, चपटा और वृत्ताकार क्षेत्र होता है, जिसे प्ररंध्रक Madreporite कहते है। ये दोनों भुजायें द्विभुजिका bivium कहलाती है और शेष तीन भुजायें त्रिभुजिका trivium कहलाती है । प्ररंध्रक एक छलनी के समान प्लेट होती है, जिसमें छिद्रदार असंख्य संकरी और अरीय खाँच होती है, जिनके छीद्र शरीर के अन्दर जल-सम्बहनी तंत्र में खुलते है ।

3.Spines:- इन शूलों के चारों ओर तथा बीच-बीच में छोटी-छोटी चिमटी के समान रचनाएँ वंतपृद पाई जाती है। ये पकड़ करने वाले अंग होते हैं, जिनका प्रयोग शरीर की सतह को साफ करने एवं सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है। ये शूल मुख सतह पर भी शूलों के आधारों से संलग्न या उनके बीच-बीच में पाए जाते हैं।

4. Papulae or gills:- मुख एवं अपमुख दोनों सतहों पर अति छोटे, अंगुली के समान, खोखले एवं आकुंचनशील प्रवर्ध भी पाए जाते हैं, जिन्हें चर्मीय क्लोम या क्लो या पैप्यूली कहते हैं। ये प्रवर्ध अध्यावरण के छोटे-छोटे त्वक् रन्ध्रो द्वारा ऊपर उभर रहते है और श्वसन तथा उत्सर्जन का कार्य करते हैं ।

5. (Pedicellariae):- सागर तारों की वृंतपद रचनाएँ अति छोटी, श्वेताभ जबड़े के समान होती और शरीर के दोनों सतहों पर शूलों के साथ पाई जाती है। ये संवृत्त या अवृत्त हो सकती है। परन्तु ऐस्टेरिआस के केवल संवृत्त प्रकार की होती है। इनमें से प्रत्येक में एक छोटा, मांसल एवं चलायमन वृत होता है। इनमें से प्रत्येक में एक छोटा, मांसल एवं चलायमान वृंत होता है।

 जिसके ऊपर परस्पर जुड़े दो कैल्केरियाई ब्लेड या कपाटियाँ होते हैं, जो एक तीसरी कैल्केरियाई आधारी या आधार पट्टिका के साथ जुड़ी रहती है। इस प्रकार के तीलन कैल्केरियाई प्लेट वाले पेडिसिलेरिया लघुचिमटी रूप कहलाते हैं। दोनों कपाटियों के सम्मुख तल दॉतेदार होते हैं दोनों कपाटियाँ एक जोड़ी अपर्वतनी और दो जोड़ी अभिवर्तनी पेशियाँ द्वारा क्रमशः खुलते और बन्द होते हैं। 

ऐस्टेरिआस में कपाटियों एक जोड़ी अपवर्तनी और दो जोड़ी अभिवर्तनी पेशियों द्वारा क्रमशः खुलते और बन्द होते हैं। ऐस्टेरिआस में कपाटियों की स्थिति के अनुसार दो प्रकार के वृंतपद पाए जाते हैं

  1.  सीधी प्रकार(Straight type)
  2.  क्रॉसित प्रकार(Crossed type)

 Straight type :- सीधी प्रकार के वृंतपदों के बाल्व सीधे होते हैं और परस्पर मिलते समय अपनी सम्पूर्ण लम्बाई में मिल जाते हैं।

 Crossed type:- क्रॉसित प्रकार के वंत पदों में दोनों वाल्व एक कैंची की भुजाओं की भाँति एक दूसरे को क्रॉस करते हैं इनमें से सीधी प्रकार के बाल्व अधिकतर त्ववीय क्लोमों के बीच पाए जाते हैं जबकि क्रॉसित प्रकार के बाल्व शूलों के आधारों पर गुच्छे में पाए जाते हैं ।


Endoskeleton Of Pentaceros or Starfish पेण्टासिरॉस का अंत:कंकाल 

डर्मिस में कैल्केसियय स्केलेटस प्लेटस पायी जाती है जिन्हें ऑसिकल्स ossicles कहते हैं यहीं अंतकंकाल बनाते हैं।

ऑसिकल्स ossicles  विभिन्न आकार के होते हैं जो आपस में संयोजी ऊतकों एवं पेशीय तन्तुओं से जुड़े रहते हैं। शरीर के पृष्ठ तल पर पाये जाने वाली ऑसिकल्स अनियमित होते हैं तथा इनमें से कंटिकाओं को बनाते हैं। इनमें से पेडिसिलैरी Pedicellariae में रूपांतरित हो जाती है जो ऑसिकल्स एम्बुलेकल खाँच को सहरा देती है उन्हें एम्बुलेन ऑसिकल्स (ambulacral ossicles) कहते हैं। ये दो पंक्तियों में व्यवस्थित रहती है तथा खाँच के सिरे पर जुड़ती है। एम्बुलेकल ऑसिकल्स की बगल में छोटी ऑसिकल्स की पंक्ति पायी जाती है। जो एम्बुलेकल कंटिकाओं को सहारा देती है। एम्बुलेक्रल आसिकल्स पर एम्बुलेकल छिद्र पाये जाते हैं जिनसे ट्यूब फीट बाहर निकलते हैं।

Surendra yadav

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